महिला एवं बाल विकास : बाल सुरक्षा प्रावधान और चुनौतियां : दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
UNIT - 1
1.बाल सुरक्षा में परिवार की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए?
परिवार की भूमिका:परिवार समाज की केन्द्रीय इकाई है और यह बच्चों के विकास व सुरक्षा का सवसे बडा केंद्र है, यह वच्चों को पोषण, भावनात्मक वंधन और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है। एक समृद्ध और पोषक पारिवारिक जीवन बच्चों की संभावनाओं और व्यक्तित्व के विकास के लिये आवश्यक है। पारिवारिक संरचना, संबंध और वातावरण सभी बच्चों के विकास में योगदान देता है।
परिवार को एक इकाई की तरह मजवूत करने के लिये विभिन्न नीतियों को एक सूत्र में वांधने की आवश्यकता है।
- परिवार में लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाये रखना।
- परिवार के भीतर संसाधनों का समान वितरण।
- बच्चों की सुरक्षा को परिवार के भीतर बनाना आवश्यक है।
OR
बाल सुरक्षा में परिवार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि परिवार बच्चों के जीवन का सबसे निकटतम और प्रभावी सुरक्षा चक्र है। परिवार बच्चों के विकास, सुरक्षा, और भावनात्मक समर्थन का सबसे बड़ा स्रोत होता है। आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें:
परिवार की भूमिका:
पोषण और स्वास्थ्य: परिवार बच्चों को शारीरिक पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा प्रदान करता है। एक स्वस्थ और पोषक आहार बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भावनात्मक बंधन: परिवार बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा और प्रेम का वातावरण प्रदान करता है। यह बच्चों के आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चों को जब परिवार का समर्थन और समझ मिलती है, तो वे विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।
सामाजिक सुरक्षा: परिवार बच्चों को सामाजिक सुरक्षा और संरक्षा प्रदान करता है। परिवार के सदस्यों के बीच के संबंध बच्चों को सामाजिक मानदंडों और मूल्यों को समझने और अपनाने में मदद करते हैं। यह बच्चों को सही और गलत की पहचान करने में सक्षम बनाता है।
शिक्षा और नैतिक मूल्यों का संचार: परिवार बच्चों को शिक्षा और नैतिक मूल्यों का संचार करता है। यह बच्चों को अच्छे नागरिक बनने और समाज में अपनी जिम्मेदारियों को समझने में मदद करता है।
एक मजबूत पारिवारिक इकाई के लिए आवश्यकताएँ:
लोकतांत्रिक मूल्य: परिवार में लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना आवश्यक है। यह बच्चों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करता है और उन्हें अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार देता है। यह बच्चों में आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा देता है।
संसाधनों का समान वितरण: परिवार के भीतर संसाधनों का समान वितरण आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चों को समान अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों, चाहे उनकी उम्र, लिंग, या स्थिति कुछ भी हो। समानता का यह सिद्धांत बच्चों के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करता है।
सुरक्षा का माहौल: बच्चों की सुरक्षा को परिवार के भीतर बनाना आवश्यक है। परिवार को बच्चों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उन्हें हर प्रकार के शोषण, दुर्व्यवहार, और उपेक्षा से सुरक्षित रखना चाहिए। परिवार के सदस्यों को बच्चों के साथ संवाद करना चाहिए और उनकी समस्याओं और चिंताओं को समझना चाहिए।
परिवार को एक इकाई की तरह मजबूत करने के लिए नीतियाँ:
परिवार केंद्रित नीतियाँ: सरकार और समाज को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए जो परिवार को मजबूत करने और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक हों। जैसे कि स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा, शिक्षा का अधिकार, और सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ।
समर्थन सेवाएँ: परिवारों को विभिन्न प्रकार की समर्थन सेवाएँ उपलब्ध होनी चाहिए, जैसे कि काउंसलिंग, वित्तीय सहायता, और स्वास्थ्य सेवाएँ। यह सेवाएँ परिवारों को संकट के समय में सहायता प्रदान करती हैं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
जागरूकता कार्यक्रम: परिवारों को बाल सुरक्षा और बच्चों के अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इससे परिवारों में बच्चों के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है।
निष्कर्ष: परिवार बच्चों की सुरक्षा, विकास, और समृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। एक मजबूत और समृद्ध पारिवारिक वातावरण बच्चों की संभावनाओं और व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। इसके लिए परिवार के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना, संसाधनों का समान वितरण करना, और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है। विभिन्न नीतियों और समर्थन सेवाओं के माध्यम से परिवारों को मजबूत किया जा सकता है, जिससे बच्चों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित की जा सके।
2.बाल सुरक्षा के संवैधानिक प्रावधान से क्या समझते हैं?
स्वतंत्रता उपरांत बाल सुरक्षा के प्रयास:स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्र के नीति निर्धारण ने बच्चों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए।
- बच्चों की सुरक्षा के लिए संविधान के प्रावधान
अनुच्छेद 14 किसी भी व्यक्ति को कानून की समाज समानता
अनुच्छेद 15 राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ वेदवा नहीं करेगा
अनुच्छेद17 जातिगत भेदभाव की समाप्ति
अनुच्छेद 21 जीवन व व्यक्तिगत
अनुच्छेद 23 बालकों का अनैतिक व्यापार बलपूर्वक कराना दंडनीय अपराध
अनुच्छेद 24 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से खदान कारखाने में काम नहीं कर सकता
अनुच्छेद 45 6 वर्ष से कम आयु के बालकों के प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान
अनुच्छेद 243 पंचायतों में आंगनबाड़ी को बाल शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करना
संविधान में प्रदत्त अधिकारों की अतिरिक्त समय समय पर बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर विभिन्न कानूनी प्रावधान व नीतियों का निर्माण निरंतर होता रहा है जिन पर हम अगर इकाई में विस्तृत चर्चा करेंगे वर्तमान प्रदर्शन में 2015 के बाद से इंटरनेट के प्रसार ने बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। एक ओर जहां दुनिया के बाल सुरक्षा कार्यकर्ता अपनी गतिविधियों व आंदोलनों के द्वारा सरकारों पर नीति परिवर्तन का दबाव बनाने में सफल हुए वहीं दूसरी ओर अपराधी अदृश्य रूप से घर की दीवारों में सुरक्षा चक्र तोड़कर घर में प्रवेश कर गए।
साइबर अपराध ब्लैकमेलिंग, छेड़छाड़ के नवीन टूल्स व प्लेटफार्म का विकास होता गया। 2020 से बालक इस अनजान शत्रु की गिरफ्त में फस कर अपनी जान देने लगे एवं ऑनलाइन गेम्स की दुनिया ने बाल मन पर कब्जा कर उन्हें अपराध व आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया है। सरकार साइबर अपराध नीति व कानून को और कड़ा करने की दिशा में काम कर रही है। वर्तमान में गोविंदा उसके पश्चात बाल सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई है जिसे संपूर्ण विश्व जूझ रहा है। बच्चों में मानसिक तनाव खतरनाक तरीके से बढ़कर 17 प्रतिशत पर जा पहुंचा है।एकाकीपन, तनाव सामाजिक दूरी, बीमारी के भय ने असुरक्षा का माहौल निर्मित कर दिया है इससे बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने में सरकार व गैर सरकारी संगठन लगातार प्रयासरत हैं। तीसरी चुनौती जिसका दंस बच्चियों को सर्वाधिक झेलना पड़ रहा है परिवार का रिश्तो की मर्यादा ना रहना राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के अनुसार यौन शोषण और बलात्कार के अधिकतर केसो मैं अपराधी परिवारिक सदस्य रिश्तेदार या परिचित ही होता है यह दौर समाज व सामुदायिक और परिवारिक पुनर्वास पद्धति पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।हम सब इन चुनौतियों के समाधान ढूंढ ही लेंगे सम्मिलित प्रयासों से क्योंकि हम सब के लिए हर बच्चा महत्वपूर्ण है|
or
बाल सुरक्षा के संवैधानिक प्रावधान
स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान ने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान किए हैं। यह प्रावधान बच्चों के अधिकारों, सुरक्षा, और उनके समग्र विकास के प्रति राष्ट्र की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। निम्नलिखित अनुच्छेद बच्चों की सुरक्षा और अधिकारों से संबंधित हैं:
अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता - किसी भी व्यक्ति को कानून की समानता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें बच्चे भी शामिल हैं।
अनुच्छेद 15: भेदभाव का निषेध - राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। यह प्रावधान बच्चों को भी समान अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत - जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता की समाप्ति करता है, जिससे बच्चों को सामाजिक समानता प्राप्त होती है।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार - यह अनुच्छेद बच्चों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 23: बलात श्रम और मानव तस्करी का निषेध - बालकों के अनैतिक व्यापार और बलपूर्वक श्रम को दंडनीय अपराध घोषित करता है।
अनुच्छेद 24: बाल श्रम का निषेध - 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खदानों, कारखानों, और अन्य जोखिम भरे कार्यों में काम करने से रोकता है।
अनुच्छेद 45: प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा - 6 वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 243: पंचायतों में आंगनबाड़ी - बाल शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए पंचायतों में आंगनबाड़ी की स्थापना का प्रावधान करता है।
स्वतंत्रता उपरांत बाल सुरक्षा के प्रयास
स्वतंत्रता के बाद, बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई कानूनी प्रावधान और नीतियों का निर्माण किया गया है।
हाल के वर्षों में बच्चों की सुरक्षा के लिए चुनौतियाँ
इंटरनेट और साइबर अपराध: 2015 के बाद इंटरनेट के प्रसार ने बच्चों की सुरक्षा के मुद्दों को और गंभीर बना दिया है। साइबर अपराध, ब्लैकमेलिंग, और छेड़छाड़ के नए टूल्स और प्लेटफॉर्म्स का विकास हुआ है। ऑनलाइन गेम्स और सोशल मीडिया ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिसके कारण कई बच्चे आत्महत्या के लिए मजबूर हुए हैं। सरकार साइबर अपराध नीति और कानून को कड़ा करने की दिशा में काम कर रही है।
मानसिक तनाव और एकाकीपन: कोविड-19 महामारी ने बच्चों में मानसिक तनाव, एकाकीपन, और सामाजिक दूरी की समस्या को बढ़ा दिया है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार और गैर सरकारी संगठनों द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
परिवारिक और सामुदायिक संरचना की चुनौतियाँ: बच्चों के यौन शोषण और बलात्कार के अधिकांश मामलों में अपराधी परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, या परिचित होते हैं। यह समाज, समुदाय, और परिवारिक पुनर्वास पद्धति पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
समाधान की दिशा में प्रयास
इन चुनौतियों का समाधान सामूहिक प्रयासों से संभव है। सरकार, गैर सरकारी संगठन, और समाज मिलकर बच्चों की सुरक्षा और भलाई के लिए काम कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हर बच्चा सुरक्षित और संरक्षित माहौल में बड़े हो सके।
सामूहिक प्रयासों से, हम इन चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और बच्चों को एक सुरक्षित और सुखद भविष्य प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि हर बच्चा महत्वपूर्ण है।
3.बाल सुरक्षा के लिये महत्वपूर्ण इकाईयों का वर्णन कीजिये?
बाल सुरक्षा के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण इकाइयाँ और संस्थाएँ हैं जो बच्चों की सुरक्षा, अधिकारों और भलाई के लिए काम करती हैं। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित इकाइयाँ शामिल हैं:
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR):
- यह आयोग बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए कार्य करता है।
- आयोग बच्चों के शोषण, दुर्व्यवहार और अन्य प्रकार के उत्पीड़न के मामलों की जांच करता है।
बाल कल्याण समिति (CWC):
- यह एक कानूनी निकाय है जो बाल कल्याण और सुरक्षा के मामलों को सुनता और निर्णय करता है।
- CWC बच्चों को पुनर्वास और देखभाल के लिए उचित संस्थानों में भेजता है।
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB):
- यह बोर्ड किशोर न्याय (Juvenile Justice) प्रणाली के तहत आने वाले मामलों को सुनता और निर्णय करता है।
- JJB बच्चों को सुधारात्मक सेवाएं और पुनर्वास प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
बाल श्रम उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण (NCLP):
- यह प्राधिकरण बाल श्रम को समाप्त करने के लिए कार्य करता है और बाल श्रमिकों के पुनर्वास और शिक्षा के लिए योजनाएँ बनाता है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय (MWCD):
- यह मंत्रालय महिलाओं और बच्चों के विकास और सुरक्षा के लिए विभिन्न नीतियों और योजनाओं को लागू करता है।
- मंत्रालय बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाता है।
NGOs (गैर-सरकारी संगठन):
- अनेक गैर-सरकारी संगठन बाल सुरक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। ये संगठन बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, और पुनर्वास के लिए कार्यरत हैं।
- ये संगठन बाल तस्करी, बाल विवाह, बाल श्रम आदि समस्याओं के खिलाफ भी काम करते हैं।
चाइल्डलाइन (1098):
- यह एक 24x7 आपातकालीन हेल्पलाइन सेवा है जो संकटग्रस्त बच्चों की मदद करती है।
- चाइल्डलाइन बच्चों की सुरक्षा, बचाव, पुनर्वास, और परामर्श सेवाएं प्रदान करती है।
इन इकाइयों का उद्देश्य बच्चों के सर्वांगीण विकास और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, ताकि वे एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में जीवन जी सकें।
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UNIT - 2
1. बाल विवाह के दुष्प्रभाव बताइए।
केस स्टडी नंबर 1 :कहानी गरिमा की है गरमा शिवपुरी जिले के पहरी ब्लॉक की एक आदिवासी बालिका थी वह छात्रावास में रह कर पढ़ रही थी अभी वह नौवीं कक्षा में ही थी क्यों घर वालों ने उसकी शादी कर दी शादी के बाद गरमा की पढ़ाई बंद हो गई घर का काम वक्त कम उम्र में गर्भवती होने पर प्रसव के दौरान गरिमा व बच्चे की मौत हो गई।
केस स्टडी नंबर 2 :मुरैना के सिकरवार क्षेत्र की वर्षा सिकरवार की शादी 16 वर्ष की उम्र में उसके माता.पिता ने तय कर दी वर्षा शादी के लिए तैयार नहीं थी बरहा की चाची ने इसका विरोध किया पर उसकी नहीं सुनी गई सास शादी के 2 दिन पूर्व वर्षा की चाची ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से मदद मांगी पर उसने गांव वालों के भय से मदद करने से इनकार कर दिया पर उसे एक नंबर दिया यह नंबर चाइल्डलाइन का था बरसाने फोन पर सारी जानकारी दी चाइल्डलाइन ने टास्क फोर्स के साथ जाकर शादी रुकवा दी। वर्षा के पिताजी ने शपथ पत्र दिया कि वह 18 वर्ष की पूर्व होने पर ही अपनी बेटी की शादी करेंगे।
- यह दो केस स्टडी हैं आपके विचार में यह क्या सही है क्या वर्षा की चाची ने सही किया
- गरिमा के मां.बाप की क्या गलती थी
आइए विचार करें
- हमारे गांव समाज में लड़कियों व महिलाओं कितना सुरक्षित है
- हम उनकी सुरक्षा के लिए क्या कर सकते हैं
- बाल विवाह कैसे रोका जा सकता है
बाल विवाह क्या है।
- 18 वर्ष से कम उम्र में लड़कियों का विवाह होने उसके जीवन विकास व स्वास्थ्य के लिए जितना घातक है उतना ही उसके बच्चों के लिए भी हानिकारक है।
- उसकी कम आयु में गर्भवती होने की संभावना होती है जिससे उसके मातृत्व भगत आवा मृत्यु होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
- उसके स्कूल जारी रखने व शिक्षित व पानी की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।
- उसके यौन शोषण की संभावना बढ़ जाती है।
- उस पर घरेलू हिंसा की संभावना बढ़ जाती है।
- उसके बच्चों के बीच उपस्थित होने एनीमिया दृष्टि उन्हें रोक ग्रस्त होने के कारण मृत्यु का शिकार होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
क्या आप जानते हैं
- जनगणना प्रतिवेदन 2001 के अनुसार लगभग 300000 लड़कियों जो 15 वर्ष से कम आयु की थी एक बच्चे की मां थी।
- 20 से 24 वर्ष की आयु वाली महिलाओं की तुलना में 10 से 14 वर्ष की उम्र की लड़कियां की मृत्यु प्रसव के दौरान अधिक होती है।
- शीघ्र गर्भवती होने पर गर्भपात की दर भी बढ़ जाती है।
- भारत व मध्य पूर्व के देशों में अधिक उम्र के पुरुष की कम उम्र की लड़कियों के साथ शादी से उनका शोषण तो होता ही है साथ ही उन्हें वेश्यावृत्ति की ओर भी धकेल दिया जाता है।
- बाल विवाह के माध्यम से लड़कियों की मजदूरी और वेश्यावृत्ति के लिए व्यापार किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
केस स्टडी
- लक्ष्मी अभी 9 साल की है वह टीकमगढ़ की रहने वाली है टीकमगढ़ बुंदेलखंड क्षेत्र में जहां पानी का अभाव रहता है लक्ष्मी के मां.बाप भी गरीब हैं खेती कम है लक्ष्मी भी अपने मां पिता के साथ गांव के अंदर बच्चों के साथ मुरैना आई है यहां वे हर साल आते हैं किन.किन महीने के लिए बरसात बाद वह गर्मी शुरू होने पर वे फसल कटाई का काम करते हैं लक्ष्मी भी उनका हाथ मिटाती है वह खेत में ही अपने घर वालों के साथ रहती है लक्ष्मी स्कूल भी नहीं जा पाती है।
आप क्या सोचते हैं
- लक्ष्मी का क्या भविष्य है
- क्या लक्ष्मी के माता.पिता को लक्ष्मी को साथ खेतों में लाना चाहिए
- क्या ऐसा कोई रास्ता है जिससे लक्ष्मी जैसे बच्चों अपनी पढ़ाई कर सकें
2. राष्ट्र संघ के बाल अधिकार के लिए प्रयास पर टिप्पणी लिखें।
राष्ट्र संघ (संयुक्त राष्ट्र) बाल अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है। यह संगठन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संधियों, घोषणाओं और पहल के माध्यम से बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने का कार्य करता है। बाल अधिकारों के प्रति संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों को विस्तृत रूप में निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
1. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन (UNCRC)
प्रारंभिक पृष्ठभूमि:
1989 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC) को अपनाया, जो 1990 में लागू हुआ। यह सम्मेलन बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए सबसे व्यापक और व्यापक दस्तावेज है।
प्रमुख प्रावधान:
UNCRC में 54 अनुच्छेद हैं, जो बच्चों के नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों को कवर करते हैं। इसके चार प्रमुख सिद्धांत हैं:
- बिना किसी भेदभाव के: सभी बच्चों को बिना किसी प्रकार के भेदभाव के समान अधिकार प्राप्त हैं।
- बच्चों के सर्वोत्तम हित: बच्चों के हितों को हमेशा सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।
- जीवन, अस्तित्व और विकास का अधिकार: बच्चों को जीवित रहने और उनके विकास के लिए आवश्यक सभी अधिकार प्राप्त हैं।
- बच्चों की राय का सम्मान: बच्चों को उनके जीवन से संबंधित सभी मामलों में अपनी राय देने का अधिकार है।
2. बाल अधिकारों के लिए UNICEF का योगदान
भूमिका:
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए मुख्य एजेंसी है। यह संगठन दुनिया भर में बच्चों के जीवन में सुधार लाने के लिए कार्य करता है।
प्रमुख कार्यक्रम:
- शिक्षा: UNICEF सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए कार्य करता है, विशेषकर लड़कियों और अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों के लिए।
- स्वास्थ्य और पोषण: बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार लाने के लिए टीकाकरण कार्यक्रम, स्वच्छता अभियान, और पोषण संबंधी सेवाएं प्रदान करता है।
- बाल संरक्षण: बाल श्रम, बाल विवाह, और अन्य शोषणकारी प्रथाओं के खिलाफ कार्य करता है।
- आपातकालीन सेवाएं: युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य संकट स्थितियों में बच्चों को सहायता प्रदान करता है।
3. बाल अधिकारों के लिए अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का योगदान
WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन):
WHO बच्चों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों का संचालन करता है, जैसे कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं, टीकाकरण कार्यक्रम, और पोषण संबंधी पहल।
ILO (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन):
ILO बाल श्रम के उन्मूलन के लिए कार्य करता है। यह संगठन बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मानकों को स्थापित करने और उनके कार्यान्वयन में सहयोग करता है।
4. बाल अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय संधियाँ और घोषणाएँ
बाल अधिकारों की घोषणा:
1959 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों की घोषणा (Declaration of the Rights of the Child) को अपनाया, जो बच्चों के संरक्षण, विकास और कल्याण के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है।
अन्य संधियाँ:
- बाल श्रम के सबसे खराब रूपों पर कन्वेंशन (ILO Convention No. 182): यह संधि बाल श्रम के सबसे खराब रूपों को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
- बाल तस्करी, पोर्नोग्राफी और यौन शोषण के खिलाफ प्रोटोकॉल: यह प्रोटोकॉल बच्चों के यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
5. वैश्विक अभियानों और पहलों का समर्थन
शिक्षा के लिए वैश्विक अभियान (GCE):
संयुक्त राष्ट्र शिक्षा के अधिकार के लिए वैश्विक अभियान का समर्थन करता है, जिसका उद्देश्य सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है।
सतत विकास लक्ष्य (SDGs):
सतत विकास लक्ष्य 2030 (SDGs) के तहत, संयुक्त राष्ट्र बच्चों के कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है।
6. क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन
क्षेत्रीय पहल:
संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय संगठनों के साथ मिलकर बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है, जैसे कि अफ्रीकी संघ, यूरोपीय संघ, और अन्य क्षेत्रीय संगठनों के साथ।
राष्ट्रीय सरकारों का समर्थन:
संयुक्त राष्ट्र बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय सरकारों के साथ मिलकर नीतियों, कार्यक्रमों और कानूनों को विकसित और लागू करने में सहयोग करता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रयास करता है। इसके विभिन्न कार्यक्रम, पहल और संधियाँ बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह संगठन वैश्विक स्तर पर बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने सदस्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, और नागरिक समाज के साथ मिलकर कार्य करता है, ताकि सभी बच्चे एक सुरक्षित, स्वस्थ, और खुशहाल जीवन जी सकें।
3. अंतराष्ट्रिय स्तर पर बाल अधिकार पर हुए प्रमुख सम्मेलन की व्याख्या कीजिये ।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकार पर हुए प्रमुख सम्मेलन
बाल अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रमुख सम्मेलन और संधियाँ आयोजित की गई हैं। इन सम्मेलनों ने बच्चों के अधिकारों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने और उन्हें संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहाँ कुछ प्रमुख सम्मेलनों की विस्तृत व्याख्या की गई है:
1. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC), 1989
पृष्ठभूमि:
बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC) सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक दस्तावेज है जो बच्चों के अधिकारों को परिभाषित करता है। इसे 20 नवंबर 1989 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था और यह 2 सितंबर 1990 को लागू हुआ।
प्रमुख विशेषताएँ:
- व्यापक अधिकार: UNCRC में 54 अनुच्छेद हैं जो बच्चों के नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों को कवर करते हैं।
- सिद्धांत: UNCRC चार प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है: बिना किसी भेदभाव के, बच्चों के सर्वोत्तम हित, जीवन, अस्तित्व और विकास का अधिकार, और बच्चों की राय का सम्मान।
- अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: UNCRC को अब तक 196 देशों ने स्वीकृत किया है, जो इसे सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत मानवाधिकार संधियों में से एक बनाता है।
प्रभाव:
UNCRC ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए वैश्विक मानदंड स्थापित किए और विभिन्न देशों को अपने कानूनों और नीतियों को इसके अनुरूप बनाने के लिए प्रेरित किया।
2. बाल तस्करी, बाल वेश्यावृत्ति और बाल पोर्नोग्राफी पर वैकल्पिक प्रोटोकॉल, 2000
पृष्ठभूमि:
यह प्रोटोकॉल UNCRC के अतिरिक्त है और बच्चों के खिलाफ यौन शोषण और तस्करी को रोकने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। इसे 25 मई 2000 को अपनाया गया था और 18 जनवरी 2002 को लागू हुआ।
प्रमुख विशेषताएँ:
- परिभाषाएँ और दायित्व: प्रोटोकॉल में बाल तस्करी, बाल वेश्यावृत्ति, और बाल पोर्नोग्राफी की स्पष्ट परिभाषाएँ दी गई हैं और सदस्य राज्यों को इन अपराधों को रोकने और दोषियों को दंडित करने के लिए ठोस कदम उठाने की जिम्मेदारी दी गई है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: प्रोटोकॉल सदस्य राज्यों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है ताकि इन अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
प्रभाव:
इस प्रोटोकॉल ने बच्चों के यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को मजबूत किया और सदस्य राज्यों को इस दिशा में अधिक ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
3. बाल अधिकारों पर वैश्विक सम्मेलन (World Summit for Children), 1990
पृष्ठभूमि:
विश्व बाल सम्मेलन (World Summit for Children) 29-30 सितंबर 1990 को न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया था। इसमें 71 राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों के प्रमुखों ने भाग लिया, जिससे यह उस समय तक का सबसे बड़ा शिखर सम्मेलन बन गया।
प्रमुख विशेषताएँ:
- बाल घोषणापत्र: सम्मेलन में 'विश्व बाल घोषणापत्र' (World Declaration on the Survival, Protection, and Development of Children) और 'बाल अधिकारों के लिए कार्य योजना' (Plan of Action for Implementing the World Declaration) को अपनाया गया।
- सहमति: घोषणापत्र में बच्चों के जीवन, विकास और संरक्षण के अधिकारों की पुनः पुष्टि की गई और सदस्य राज्यों ने 2000 तक बाल अधिकारों की स्थिति में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने का वचन दिया।
प्रभाव:
इस सम्मेलन ने बच्चों के अधिकारों के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को मजबूत किया और बाल अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए ठोस नीतियों और कार्यक्रमों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. बाल श्रम के सबसे खराब रूपों पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कन्वेंशन नंबर 182, 1999
पृष्ठभूमि:
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 1999 में बाल श्रम के सबसे खराब रूपों को समाप्त करने के लिए इस कन्वेंशन को अपनाया। यह 19 नवंबर 2000 को लागू हुआ।
प्रमुख विशेषताएँ:
- परिभाषाएँ और प्रतिबंध: कन्वेंशन में बाल श्रम के सबसे खराब रूपों की स्पष्ट परिभाषाएँ दी गई हैं, जिनमें तस्करी, दासता, जबरन श्रम, और खतरनाक काम शामिल हैं।
- कार्य योजना: सदस्य राज्यों को बाल श्रम के सबसे खराब रूपों को समाप्त करने के लिए तुरंत कार्रवाई करने की आवश्यकता है और इसके लिए राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों का विकास करना अनिवार्य है।
प्रभाव:
ILO कन्वेंशन नंबर 182 ने बाल श्रम के सबसे खराब रूपों के खिलाफ वैश्विक जागरूकता और प्रतिबद्धता को बढ़ावा दिया और सदस्य राज्यों को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
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UNIT - 3
ऑल संरक्षण से जुड़े मुद्दों की व्यापकता स्तर स्वरूप तात्कालिक आवश्यकता और जटिलता बहुत चुनौतीपूर्ण है संरक्षण माहौल की कोई कानूनी या अन्य प्रकार की सर्वमान्य परिभाषा नहीं है किंतु उसमें कम से कम निम्नलिखित तत्वों का समावेश होना आवश्यक है।
बाल संरक्षण हेतु वातावरण निर्माण में निम्नलिखित तत्वों का समावेश होना आवश्यक है:
सुरक्षित शारीरिक वातावरण: बच्चों को एक सुरक्षित शारीरिक वातावरण प्रदान करना जिसमें वे खेल सकें, सीख सकें और विकसित हो सकें। इसमें घर, स्कूल, और समुदाय के स्थान शामिल होते हैं। सुरक्षित वातावरण में खतरनाक वस्तुओं और स्थितियों से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
स्वास्थ्य और स्वच्छता: बच्चों की सेहत और स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना कि उन्हें स्वच्छ पानी, पौष्टिक भोजन, और स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, ताकि वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें।
शैक्षिक सुविधाएं: बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना जिससे वे ज्ञान प्राप्त कर सकें और अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकें। स्कूलों में सुरक्षित और सहायक वातावरण का निर्माण आवश्यक है ताकि बच्चे बिना किसी भय के शिक्षा प्राप्त कर सकें।
मनोवैज्ञानिक समर्थन: बच्चों को मानसिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान करना, जिससे वे आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान के साथ बड़े हो सकें। इसमें परिवार, शिक्षक, और समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जो बच्चों को सहारा और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
कानूनी संरक्षण: बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कानूनी व्यवस्थाओं का होना आवश्यक है। बाल श्रम, शोषण, और दुर्व्यवहार के खिलाफ कड़े कानून और उनके उचित कार्यान्वयन से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
सामाजिक जागरूकता: समाज में बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। इसके लिए प्रचार-प्रसार, शिक्षा कार्यक्रम, और सामुदायिक सहभागिता आवश्यक है जिससे हर कोई बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति जागरूक हो सके।
आपातकालीन सेवाएं: बच्चों की तात्कालिक सुरक्षा के लिए आपातकालीन सेवाओं का प्रावधान होना चाहिए। इसमें हेल्पलाइन, बचाव सेवाएं, और आश्रय स्थल शामिल होते हैं जो संकट के समय बच्चों को तत्काल सहायता प्रदान करते हैं।
परिवार का समर्थन: एक सहायक और सशक्त परिवारिक वातावरण बच्चों के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है। माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को बच्चों की देखभाल और समर्थन के लिए सशक्त और शिक्षित करना आवश्यक है।
समुदाय का सहयोग: समुदाय को बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। सामुदायिक संगठन, एनजीओ, और सरकारी संस्थाओं का सहयोग बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने में सहायक हो सकता है।
इन तत्वों का समावेश बाल संरक्षण हेतु एक समग्र और सुरक्षित वातावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2.बाल संरक्षण में निगरानी व रिपोर्टिंग का महत्व स्पष्ट करें।
बाल संरक्षण में निगरानी व रिपोर्टिंग का महत्व
बाल संरक्षण का उद्देश्य बच्चों को हर प्रकार के शोषण, हिंसा, और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रखना है। इसके लिए प्रभावी निगरानी और रिपोर्टिंग व्यवस्था का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि किसी भी प्रकार के शोषण की घटनाओं की जानकारी समय पर मिल सके और उचित कार्रवाई की जा सके। इस संदर्भ में निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से बाल संरक्षण में निगरानी व रिपोर्टिंग का महत्व विस्तृत रूप में स्पष्ट किया जा सकता है:
1. बाल संरक्षण में निगरानी व रिपोर्टिंग की भूमिका
समस्या की पहचान:
- पहचान करना: प्रभावी निगरानी व्यवस्था बच्चों के खिलाफ हो रहे शोषण और दुर्व्यवहार की घटनाओं को पहचानने में मदद करती है।
- डेटा संग्रहण: निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली डेटा एकत्रित करती है जो समस्या की व्यापकता और स्वरूप को समझने में मदद करता है।
त्वरित प्रतिक्रिया:
- त्वरित कार्रवाई: निगरानी और रिपोर्टिंग से शोषण की घटनाओं की तुरंत जानकारी मिलती है, जिससे त्वरित कार्रवाई संभव हो पाती है।
- समय पर हस्तक्षेप: यह प्रणाली समय पर हस्तक्षेप को सुनिश्चित करती है, जिससे बच्चों को तुरंत सहायता और सुरक्षा मिल सके।
2. संरक्षक माहौल बनाने के लिए निगरानी की आवश्यकताएँ
नीतियों का क्रियान्वयन:
- नीतियों की प्रभावशीलता: निगरानी व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि बाल संरक्षण के लिए बनाई गई नीतियों का सही ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है या नहीं।
- उचित सुधार: अगर किसी नीति में कमियाँ पाई जाती हैं, तो निगरानी और रिपोर्टिंग से प्राप्त जानकारी के आधार पर उन्हें दूर किया जा सकता है।
जवाबदेही:
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: निगरानी व्यवस्था के माध्यम से यह सुनिश्चित होता है कि जिम्मेदार व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
- पारदर्शिता: निगरानी और रिपोर्टिंग व्यवस्था से पारदर्शिता बनी रहती है, जिससे समाज में विश्वास और विश्वास की भावना विकसित होती है।
3. स्थानी सहयोग और भागीदारी का महत्व
समुदाय की भागीदारी:
- सामुदायिक जागरूकता: स्थानीय समुदाय की भागीदारी से बाल संरक्षण के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ती है।
- स्थानीय ज्ञान का उपयोग: समुदाय के सदस्यों का स्थानीय ज्ञान और अनुभव निगरानी और रिपोर्टिंग प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बना सकता है।
सामुदायिक निगरानी समितियाँ:
- स्थानीय निगरानी समितियाँ: समुदाय के सदस्यों से मिलकर बनी निगरानी समितियाँ बाल संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
- सहयोग और समर्थन: स्थानीय सहयोग से बाल संरक्षण की प्रक्रियाएँ अधिक प्रभावी और स्थायी हो सकती हैं।
4. प्रभावकारी निगरानी व्यवस्था की आवश्यकताएँ
प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:
- कर्मचारियों का प्रशिक्षण: निगरानी और रिपोर्टिंग व्यवस्था में शामिल कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण आवश्यक है।
- समुदाय का प्रशिक्षण: समुदाय के सदस्यों को भी बाल संरक्षण की जानकारी और निगरानी प्रक्रियाओं के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
तकनीकी सहयोग:
- तकनीकी उपकरण: निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए उन्नत तकनीकी उपकरणों और प्रणालियों का उपयोग करना।
- डिजिटल निगरानी: डिजिटल प्लेटफार्म और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से निगरानी प्रक्रिया को सुदृढ़ करना।
5. सफलता के उदाहरण
केन्या:
- केस स्टडी: केन्या में सामुदायिक आधारित बाल संरक्षण निगरानी प्रणाली ने बच्चों के खिलाफ होने वाले शोषण के मामलों में कमी लाई है।
- सहयोग: इस प्रणाली में स्थानीय समुदायों, सरकारी एजेंसियों और एनजीओ के बीच सहयोग से सफलता प्राप्त हुई।
भारत:
- बाल संरक्षण समितियाँ: भारत में कई राज्यों में बाल संरक्षण समितियों का गठन किया गया है, जो स्थानीय स्तर पर बाल संरक्षण की निगरानी करती हैं।
- शिक्षा और जागरूकता: इन समितियों ने बाल संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाने और समय पर हस्तक्षेप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष
बाल संरक्षण में निगरानी और रिपोर्टिंग की व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बच्चों के शोषण और दुर्व्यवहार को पहचानने, त्वरित कार्रवाई करने और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती है। स्थानी सहयोग और भागीदारी से यह व्यवस्था और अधिक प्रभावी हो सकती है, जिससे बच्चों के लिए एक संरक्षक और सुरक्षित माहौल का निर्माण हो सके। प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और सामुदायिक भागीदारी से यह प्रक्रिया और मजबूत हो सकती है। इस प्रकार, निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक अनिवार्य उपकरण है।
3.बाल संरक्षण के मूलभूत सिद्धांत कौन से हैं।
1. बच्चों के साथ संयम से पेश आना।
2. क्यों के साथ उनके सामाजिक स्तर धर्म जाति लिंग रंग तथा अन्य सामाजिक आर्थिक स्तर के आधार पर पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए।
3. उनकी बात सुनी जानी चाहिए तथा उन्हें शक भरी निगाह से नहीं देखा जाना चाहिए।
4. जिम्मेदार लोगों को ऐसे मंच की व्यवस्था करनी चाहिए जहां बच्चे अपनी समस्याओं के बारे में निसंकोच कह सकें।
5. बच्चों द्वारा समस्या बताने के दौरान रोका टोकी ना करें।
6. कोई धारणा ना बनाएं।
7. गोपनीयता बनाए रखें।
8. परिस्थिति के लिए बच्चे को जिम्मेदार ना ठहराएं।
9. बच्चों को भरोसे में लें।
10. बच्चों की शिकायत पर त्वरित कार्यवाही होनी चाहिए।
11. बच्चों से संबंधित मसलों में उनके परिवार को शामिल करें।
12. प्रयास करें कि समस्या का समाधान सामाजिक स्तर पर हो।
बाल संरक्षण के मूलभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं, जो समुदाय आधारित बाल संरक्षण के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं:
बच्चों के साथ संयम से पेश आना: बच्चों के साथ संयमित और धैर्यपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें।
भेदभाव रहित व्यवहार: बच्चों के साथ उनके सामाजिक स्तर, धर्म, जाति, लिंग, रंग, या अन्य सामाजिक-आर्थिक स्तर के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। सभी बच्चों को समान रूप से देखा और समझा जाना चाहिए।
बच्चों की बात सुनना: बच्चों को सुनना और उनकी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्हें विश्वास में लेना चाहिए और उनकी चिंताओं को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए।
शक भरी निगाह से नहीं देखना: बच्चों को शक की निगाह से नहीं देखना चाहिए। उन्हें विश्वास और समर्थन देना चाहिए ताकि वे अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात कर सकें।
निसंकोच बात करने का मंच प्रदान करना: जिम्मेदार लोगों को ऐसा मंच उपलब्ध कराना चाहिए जहां बच्चे अपनी समस्याओं के बारे में बिना किसी संकोच के बात कर सकें।
बातचीत के दौरान रोक-टोक ना करना: बच्चों द्वारा अपनी समस्या बताने के दौरान उन्हें रोकना या टोका-टोकी नहीं करनी चाहिए। उन्हें पूरी बात कहने का अवसर देना चाहिए।
कोई धारणा ना बनाना: बच्चों की बात सुनते समय कोई पूर्वधारणा नहीं बनानी चाहिए। हर बात को निष्पक्षता से सुनना और समझना चाहिए।
गोपनीयता बनाए रखना: बच्चों की समस्याओं और उनकी जानकारी की गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक है ताकि वे सुरक्षित महसूस करें और अपनी बातें बिना किसी डर के कह सकें।
बच्चे को दोषी ना ठहराना: परिस्थिति के लिए बच्चे को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। उन्हें समर्थन और सहारा देना चाहिए ताकि वे अपनी समस्याओं का समाधान पा सकें।
बच्चों को भरोसे में लेना: बच्चों को भरोसे में लेना और उनके साथ विश्वास का संबंध बनाना चाहिए। उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि वे महत्वपूर्ण हैं और उनकी समस्याएं महत्वपूर्ण हैं।
तत्काल कार्यवाही: बच्चों की शिकायत पर त्वरित कार्यवाही होनी चाहिए। उनकी समस्याओं का समाधान शीघ्रता से करना आवश्यक है ताकि वे सुरक्षित महसूस करें।
परिवार की सहभागिता: बच्चों से संबंधित मसलों में उनके परिवार को शामिल करना चाहिए। परिवार का समर्थन बच्चों की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण होता है।
सामाजिक स्तर पर समाधान: प्रयास करना चाहिए कि समस्या का समाधान सामाजिक स्तर पर हो। समुदाय की सहभागिता से बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण को अधिक प्रभावी ढंग से सुनिश्चित किया जा सकता है।
इन सिद्धांतों का पालन करके बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित किया जा सकता है, और एक सुरक्षित और सहायक वातावरण का निर्माण किया जा सकता है जिसमें बच्चे सुरक्षित, संरक्षित, और सम्मानित महसूस करें।
4.समुदाय आधारित संरक्षण प्रणाली क्या है।
समुदाय आधारित बाल सुरक्षा प्रणाली बच्चों तथा उनके परिवारों के लिए प्रमुख ग्राम बाढ़ वार्ड नगर स्तरीय सुरक्षा अनुक्रिया के रूप में कार्य करती है। सामुदायिक कार्यकर्ता जोखिम वाले बच्चों की पहचान करने तथा सामुदायिक विवादों तथा जरूरतमंद बच्चों को प्रत्यक्ष सहयोग प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह प्रणाली समुदाय में बाल सुरक्षा के मसलों दर्शनीयता लाने में सहयोग करती है सामुदायिक संगठन ना सिर्फ बाल सुरक्षा से जुड़े मसलों में रोकथाम करने व जवाबदारी तय करने में सहायक हैं बल्कि प्रेशर ग्रुप के रूप में भी कार्य करते हैं। सामुदायिक आधारित प्रणाली कार्य कर सकती है अथवा क्षेत्रीय भी हो सकती है बच्चे बाल समूहो अथवा संगठनों के रूप में सामुदायिक प्रणाली का अभिन्न हिस्सा है।
समुदाय आधारित संरक्षण प्रणाली
समुदाय आधारित संरक्षण प्रणाली (Community-Based Protection System) एक ऐसा ढांचा है जो बच्चों और उनके परिवारों के लिए ग्राम, वार्ड, नगर, या क्षेत्रीय स्तर पर सुरक्षा और सहयोग प्रदान करता है। यह प्रणाली स्थानीय समुदाय की भागीदारी और सहयोग पर आधारित होती है और इसका उद्देश्य जोखिम में पड़े बच्चों की पहचान, उनकी सुरक्षा और संरक्षण को सुनिश्चित करना है।
समुदाय आधारित बाल सुरक्षा प्रणाली
प्रमुख विशेषताएँ:
- समुदाय की भागीदारी: इस प्रणाली में स्थानीय समुदाय, संगठन, और सामुदायिक कार्यकर्ता सक्रिय रूप से शामिल होते हैं।
- स्थानीय समाधान: यह प्रणाली स्थानीय समस्याओं और आवश्यकताओं के अनुरूप समाधान प्रदान करती है।
- निगरानी और रिपोर्टिंग: सामुदायिक कार्यकर्ता बाल सुरक्षा से जुड़े मसलों की निगरानी करते हैं और रिपोर्ट करते हैं।
भूमिका और कार्य
जोखिम वाले बच्चों की पहचान:
- सामुदायिक कार्यकर्ता: सामुदायिक कार्यकर्ता या वालंटियर्स स्थानीय स्तर पर बच्चों की स्थिति की निगरानी करते हैं और जोखिम में पड़े बच्चों की पहचान करते हैं।
- स्थानीय सूचना: यह कार्यकर्ता समुदाय के सदस्यों से जानकारी एकत्रित करते हैं और इसे संबंधित अधिकारियों या संगठनों के साथ साझा करते हैं।
प्रत्यक्ष सहयोग और सहायता:
- जरूरतमंद बच्चों की सहायता: सामुदायिक कार्यकर्ता और संगठन जरूरतमंद बच्चों को प्रत्यक्ष सहयोग प्रदान करते हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और पोषण संबंधी सहायता।
- सामुदायिक विवादों का समाधान: यह प्रणाली समुदाय में बच्चों के खिलाफ होने वाले विवादों और शोषण के मामलों का समाधान करती है।
बाल सुरक्षा के मुद्दों की दृश्यता:
- जागरूकता अभियान: सामुदायिक संगठन बाल सुरक्षा के मुद्दों पर जागरूकता फैलाते हैं और बच्चों के अधिकारों की जानकारी प्रदान करते हैं।
- सार्वजनिक भागीदारी: समुदाय के सभी वर्गों को बाल सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा और समाधान में शामिल किया जाता है।
सामुदायिक संगठनों की भूमिका
रोकथाम और जवाबदेही:
- रोकथाम: सामुदायिक संगठन बाल शोषण और दुर्व्यवहार की घटनाओं को रोकने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करते हैं।
- जवाबदेही तय करना: यह संगठन बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों और संस्थाओं को जवाबदेह ठहराते हैं।
प्रेशर ग्रुप के रूप में कार्य:
- नीति निर्माण: सामुदायिक संगठन स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर बाल संरक्षण नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में सहयोग करते हैं।
- अधिकारों की वकालत: यह संगठन बच्चों के अधिकारों की वकालत करते हैं और उनके हक के लिए आवाज उठाते हैं।
बच्चों के समूह और संगठन
बच्चों की भागीदारी:
- बाल समूह: बच्चे बाल समूहों और संगठनों का हिस्सा होते हैं, जहां वे अपने मुद्दों और समस्याओं पर चर्चा करते हैं।
- नेतृत्व का विकास: यह समूह बच्चों में नेतृत्व कौशल का विकास करते हैं और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाते हैं।
बच्चों की भूमिका:
- सहयोग और समर्थन: बच्चे स्वयं भी बाल संरक्षण और सुरक्षा के प्रयासों में शामिल होते हैं और अपने साथियों की सहायता करते हैं।
- समुदाय के अभिन्न हिस्सा: बच्चे सामुदायिक प्रणाली का अभिन्न हिस्सा होते हैं और सामुदायिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
प्रभावशीलता और सफलता के उदाहरण
केन्या:
- केस स्टडी: केन्या में सामुदायिक आधारित बाल सुरक्षा प्रणाली ने बच्चों के खिलाफ होने वाले शोषण के मामलों में कमी लाई है।
- स्थानीय समर्थन: इस प्रणाली में स्थानीय समुदायों, सरकारी एजेंसियों और एनजीओ के बीच सहयोग से सफलता प्राप्त हुई।
भारत:
- बाल संरक्षण समितियाँ: भारत में कई राज्यों में बाल संरक्षण समितियों का गठन किया गया है, जो स्थानीय स्तर पर बाल संरक्षण की निगरानी करती हैं।
- शिक्षा और जागरूकता: इन समितियों ने बाल संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाने और समय पर हस्तक्षेप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
चुनौतियाँ और समाधान
चुनौतियाँ:
- संसाधनों की कमी: समुदाय आधारित प्रणाली को पर्याप्त संसाधनों और समर्थन की आवश्यकता होती है, जो अक्सर उपलब्ध नहीं हो पाते।
- सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: कई बार सामुदायिक मान्यताओं और परंपराओं के कारण बाल संरक्षण के प्रयासों में बाधाएँ आती हैं।
समाधान:
- स्थानीय नेतृत्व का विकास: समुदाय के सदस्यों को प्रशिक्षित और सशक्त बनाना, ताकि वे बाल संरक्षण के प्रयासों का नेतृत्व कर सकें।
- सतत् शिक्षा और जागरूकता: नियमित शिक्षा और जागरूकता अभियानों के माध्यम से समुदाय को बाल संरक्षण के महत्व और उसके तरीकों के बारे में जागरूक बनाना।
निष्कर्ष
समुदाय आधारित संरक्षण प्रणाली बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनके समग्र विकास के लिए एक महत्वपूर्ण ढांचा है। यह प्रणाली स्थानीय समुदाय की भागीदारी और सहयोग पर आधारित होती है और इसका उद्देश्य जोखिम में पड़े बच्चों की पहचान, उनकी सुरक्षा और संरक्षण को सुनिश्चित करना है। सामुदायिक संगठनों, बच्चों के समूहों और स्थानीय कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी से यह प्रणाली अधिक प्रभावी और सफल हो सकती है। संसाधनों की कमी और सामाजिक बाधाओं के बावजूद, सामुदायिक आधारित बाल सुरक्षा प्रणाली बच्चों के लिए एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
(1) डरा धमका कर या
(2) बल प्रयोग अथवा किसी भी अन्य प्रकार की प्रताड़ना का प्रयोग करके या
(3) अपहरण द्वारा या
(A) धोखा या कपट द्वारा या ताकत के दुरूपयोग द्वारा:-
(1) नौकरी पर रखना।
(2) एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है।
(3) आश्रय देता है।
(4) दूसरे को सौंप देता है।
(5) किसी दूसरे से हासिल करता है।
तथा इस हेतु व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के लिये भुगतान या फायदा देता है, अथवा प्राप्त करता है तो वह दुव्र्यापार (ट्रेफकिंग) का अपराध करता है।
बाल र्दुव्यापार एक बहु आयामी प्रकृति का संगठित अपराध है, जिसकी पहुँच वैश्विक स्तर पवर है। इसमें धोखाधड़ी, अपहरण, खरीद, विक्री, गलत तरीके से कारावास आदि कई अपराधों के तत्व शामिल है, जिनसे विभिन्न प्रकार के शोषण और अपहरण को जन्म मिलता है जैसे बालश्रम बधुआ मजदूरी, यौन शोषण, बालात्कार अंग व्यापार आदि।
बाल दुव्र्यवहार (बाल ट्रेफिकिंग) की परिभाषा और इसे कानून में निहित प्रावधानों को स्पष्ट करते हैं:
परिभाषा: बाल दुव्र्यवहार या बाल ट्रेफिकिंग एक गंभीर अपराध है जिसमें बच्चों को अपहरण, शोषण, यौन उत्पीड़न, व्यापार और उनके उपयोग के लिए बदनाम किया जाता है। यह अपराध विभिन्न तरीकों से हो सकता है, जैसे अपहरण, धोखाधड़ी, शोषण और अन्य गलत तरीकों से बच्चों को शामिल करके उनसे लाभ कमाने का प्रयास।
कानूनी प्रावधान: भारतीय दण्ड संहिता (IPC) 1860 में बाल दुव्र्यवहार (बाल ट्रेफिकिंग) के खिलाफ कई धाराएं शामिल हैं। इसमें निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान सम्मिलित हैं:
धमकावट और बल प्रयोग: किसी बच्चे को धमका कर या बल प्रयोग करके उसे अपहरण करना या अन्य शोषण के लिए उपयोग करना, यह अपराध शामिल होता है।
अपहरण: किसी बच्चे को बिना सहमति के उसके अगर उसके अपहरण करना, यह भी बाल ट्रेफिकिंग के अंतर्गत आता है।
धोखाधड़ी और चालाकी: बच्चों को धोखा देकर उन्हें अपहरण करने की कोशिश करना या उनसे उनकी सहमति के बिना कोई गलत कार्य करना, यह भी अपराध की श्रेणी में आता है।
व्यापार और बच्चों की अनधिकृत व्यापारिक उपयोग: बच्चों को व्यापार के लिए बेचना, खरीदना या उनके अनधिकृत उपयोग करना भी बाल दुव्र्यवहार के तहत आता है।
इन प्रावधानों के तहत, बाल दुव्र्यवहार के आरोपी को कड़ी सजा हो सकती है और इसे रोकने के लिए समाज और कानूनी प्रणाली द्वारा सख्त कदम उठाए जाते हैं।
किशोर न्याय अधिनियम 2015 भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था और इसमें बच्चों के हक की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
बाल के हकों की सुरक्षा: यह अधिनियम बच्चों के संरक्षण, उनके विकास और अधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है।
बाल संरक्षण प्राधिकरण (CWC): अधिनियम द्वारा बाल संरक्षण प्राधिकरण (CWC) की स्थापना की गई है, जो बालकों के हकों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जिम्मेदार होता है। CWC विभिन्न बालकों की स्थितियों का मूल्यांकन करता है और उनके हकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कार्रवाई करता है।
बाल ग्रहण और पुनर्वास: अधिनियम द्वारा बाल गृहण और पुनर्वास की स्थापना और प्रबंधन की स्थापना की गई है, जो ऐसे बच्चों के लिए हैं जो विभिन्न कारणों से अपने परिवार से अलग हो गए हैं।
शिक्षा और प्रशिक्षण: अधिनियम बच्चों के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों को सुनिश्चित करने के लिए उचित व्यवस्थाएं करता है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के संपूर्ण विकास को समर्थन देना है।
बाल संरक्षण समूह (CWC) की भूमिका: अधिनियम द्वारा एक विशेष बाल संरक्षण समूह (CWC) की स्थापना की गई है, जो बच्चों के हकों की सुरक्षा के लिए न्यायिक संस्थाओं के साथ काम करता है।
इन प्रमुख प्रावधानों के माध्यम से, किशोर न्याय अधिनियम बच्चों के हकों की रक्षा और सुरक्षा में सकारात्मक कदम उठाता है और उन्हें उनके अधिकारों के लिए समर्थन प्रदान करता है।
(3) बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के प्रमुख कार्य बतायें ?
- बाल विवाह पर रोक लगाना।
- बाल विवाह के आयोजन में शामिल व्यक्तियों के प्रभावी अभियोजन के लिये जानकारी और सबूत एकत्र करना।
- बाल विवाह के दुष्प्रमाणों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना।
- बाल विवाह के खिलाफ समुदाय का संवेदनशील बनाना।
- पीड़ितों को आवश्यक सहायता प्रदान करना।
- बाल कल्याण समिति न होने पर बच्चों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना।
बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी (Child Marriage Prohibition Officer) का मुख्य उद्देश्य बाल विवाह को रोकना और इससे संबंधित कानूनों को लागू करना है। उनके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
बाल विवाह पर रोक लगाना:
- किसी भी बाल विवाह के आयोजन को रोकने के लिए तत्पर रहना।
- बाल विवाह की सूचना मिलने पर त्वरित कार्रवाई करना और विवाह को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाना।
प्रभावी अभियोजन के लिए जानकारी और सबूत एकत्र करना:
- बाल विवाह के आयोजन में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए सबूत और जानकारी एकत्र करना।
- पुलिस और अन्य कानूनी एजेंसियों के साथ मिलकर जांच करना और अभियोजन प्रक्रिया को सुचारु बनाना।
बाल विवाह के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना:
- बाल विवाह के नकारात्मक प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करना।
- इसके स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में समाज को शिक्षित करना।
बाल विवाह के खिलाफ समुदाय को संवेदनशील बनाना:
- समुदाय में बाल विवाह के खिलाफ संवेदनशीलता बढ़ाना।
- स्थानीय नेताओं, शिक्षकों, और समाजसेवी संगठनों के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाना।
पीड़ितों को आवश्यक सहायता प्रदान करना:
- बाल विवाह के पीड़ितों को आवश्यक सहायता और संरक्षण प्रदान करना।
- उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, और पुनर्वास सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना।
बाल कल्याण समिति न होने पर कानूनी सुरक्षा प्रदान करना:
- यदि किसी क्षेत्र में बाल कल्याण समिति उपलब्ध नहीं है, तो बच्चों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना।
- बाल विवाह से बचाए गए बच्चों को आवश्यक कानूनी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
अतिरिक्त कार्य
इन मुख्य कार्यों के अतिरिक्त, बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी निम्नलिखित कार्य भी कर सकते हैं:
संगठनों के साथ सहयोग:
- गैर-सरकारी संगठनों, महिला समूहों, और अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर बाल विवाह के खिलाफ काम करना।
- सामुदायिक कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन करना।
विवाह पंजीकरण की निगरानी:
- विवाह पंजीकरण की निगरानी करना और यह सुनिश्चित करना कि सभी विवाह कानूनी आयु के अनुसार ही पंजीकृत हो रहे हैं।
- अवैध विवाह पंजीकरण को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाना।
रिपोर्टिंग और रिकॉर्ड कीपिंग:
- बाल विवाह की घटनाओं की रिपोर्टिंग और उनके रिकॉर्ड रखना।
- समय-समय पर सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों को रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:
- स्थानीय अधिकारियों और समुदाय के सदस्यों को बाल विवाह के खिलाफ प्रशिक्षण देना।
- उनकी क्षमता को बढ़ाना ताकि वे बाल विवाह को रोकने में अधिक प्रभावी हो सकें।
बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी का कार्य समाज में बाल विवाह को समाप्त करने और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सक्रिय और समर्पित प्रयासों से बाल विवाह की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है और बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।
(4) HIV/AIDS बिल 2009 के प्रमुख प्रावधान बतायें ?
HIV/AIDS बिल 2009, भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था और इसमें विभिन्न प्रमुख प्रावधान शामिल हैं। यहां इस बिल के प्रमुख प्रावधानों का विवरण है:
अधिकार और कर्तव्यों का प्रावधान: इस बिल में जनता के हक को मान्यता देने और उन्हें संक्रमण से बचाव और उपचार की सुविधा प्रदान करने के लिए अधिकार और कर्तव्यों के निर्धारण का प्रावधान है।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO): बिल में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) को स्थापित किया गया है, जो HIV/AIDS के प्रबंधन, नियंत्रण, और निवारण के लिए प्रमुख संगठन है।
सार्वजनिक समझौता: बिल में सार्वजनिक समझौता को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान है, जो सामाजिक और सार्वजनिक स्तर पर HIV/AIDS के विरुद्ध जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद करता है।
अनुसंधान और विकास: बिल में अनुसंधान और विकास के लिए विशेष प्रावधान है, जो नई तकनीकी और वैज्ञानिक विकास को प्रोत्साहित करता है और नए उपचारों तथा वैक्सीनों के विकास में मदद करता है।
कानूनी संरक्षा: बिल में HIV/AIDS से प्रभावित व्यक्तियों को कानूनी संरक्षा प्रदान करने के लिए कई प्रावधान हैं, जिससे उन्हें समाज में सम्मान और स्थिति मिल सके।
यह बिल भारत में HIV/AIDS संक्रमण के प्रबंधन और नियंत्रण में महत्वपूर्ण कदम था और समाज में जागरूकता और समर्थन को बढ़ाने में मदद करता है।
(5) पाक्सो एक्ट पर विस्तृत टिप्पणी लिखें ?
पॉक्सो (POCSO) एक्ट, जिसका पूरा नाम "प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस" एक्ट है, भारत सरकार द्वारा 2012 में लागू किया गया था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी से सुरक्षित रखना है। यह कानून बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यहाँ पर इस अधिनियम पर विस्तृत टिप्पणी प्रस्तुत की गई है:
पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य
पॉक्सो एक्ट का मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम के माध्यम से यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, और बाल पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों के खिलाफ सख्त कानूनी प्रावधान किए गए हैं।
प्रमुख प्रावधान
व्यापक परिभाषाएं:
- यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, और बाल पोर्नोग्राफी को स्पष्ट और व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है।
- इसमें बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार के यौन अपराध को शामिल किया गया है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।
सख्त दंड:
- अपराध की गंभीरता के आधार पर सख्त दंड का प्रावधान है, जिसमें न्यूनतम और अधिकतम सजा निर्धारित की गई है।
- यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यूनतम 3 वर्ष की सजा और अधिकतम 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है।
- गंभीर मामलों में, जैसे कि बलात्कार, न्यूनतम 10 वर्ष की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास का प्रावधान है।
गोपनीयता का संरक्षण:
- बच्चों की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं।
- पीड़ित बच्चे का नाम, पता, और अन्य पहचान संबंधी जानकारी को गोपनीय रखा जाता है।
त्वरित सुनवाई:
- पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत मामलों की सुनवाई विशेष अदालतों में की जाती है, जिन्हें फास्ट ट्रैक कोर्ट के रूप में भी जाना जाता है।
- मामलों का निपटारा तेजी से किया जाता है ताकि पीड़ित बच्चों को न्याय मिल सके।
मेडिकल परीक्षण:
- बच्चों के मेडिकल परीक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जिसमें उनकी सहमति और गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- मेडिकल परीक्षण के दौरान पीड़ित बच्चे के माता-पिता या संरक्षक की उपस्थिति सुनिश्चित की जाती है।
विशेष बाल मित्र पुलिस अधिकारी:
- पुलिस थानों में विशेष बाल मित्र पुलिस अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं, जो बच्चों के मामलों को संवेदनशीलता के साथ संभालते हैं।
- यह अधिकारी बच्चों से बयान लेते समय उन्हें सहज महसूस कराते हैं और उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं।
संशोधन और अद्यतन
2019 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया गया था, जिसमें दंड को और अधिक सख्त किया गया। संशोधनों के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
- बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल और अधिकतम मौत की सजा का प्रावधान किया गया।
- बाल पोर्नोग्राफी के मामलों में सजा और जुर्माने को बढ़ाया गया।
- अधिनियम के तहत नए प्रकार के अपराधों को भी शामिल किया गया।
पॉक्सो एक्ट की चुनौतियाँ
हालांकि पॉक्सो एक्ट बच्चों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं:
- जागरूकता की कमी: ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में लोगों को इस अधिनियम के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है।
- कानूनी प्रक्रिया: कानूनी प्रक्रिया की जटिलता और लंबी अवधि कभी-कभी पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों के लिए मुश्किलें खड़ी करती हैं।
- सामाजिक कलंक: यौन उत्पीड़न के मामलों में सामाजिक कलंक के कारण कई बार पीड़ित बच्चे और उनके परिवार शिकायत दर्ज कराने से हिचकिचाते हैं।
निष्कर्ष
पॉक्सो एक्ट एक महत्वपूर्ण और आवश्यक कानूनी प्रावधान है जो बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत सख्त दंड, त्वरित न्याय, और बच्चों की गोपनीयता की सुरक्षा के प्रावधान बच्चों की सुरक्षा के प्रति एक सकारात्मक कदम हैं। हालांकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन और जागरूकता बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। समाज, सरकार, और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि बच्चों को एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण मिल सके।
बाल सुरक्षा की आवश्यकता
बाल सुरक्षा की आवश्यकता कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- विकास का अधिकार: बच्चों का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण में ही संभव है।
- मानवाधिकार: बच्चे भी मानवाधिकार के अंतर्गत आते हैं, और उन्हें सुरक्षा, शिक्षा, और स्वास्थ्य का अधिकार है।
- भविष्य की नींव: बच्चे समाज के भविष्य हैं, और उनकी सुरक्षा में निवेश करना समाज के समग्र विकास और प्रगति के लिए आवश्यक है।
- शोषण और दुर्व्यवहार से बचाव: बच्चों को यौन शोषण, बाल मजदूरी, तस्करी, और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाना आवश्यक है।
- समानता: बच्चों के लिए समान अवसर और समान सुरक्षा सुनिश्चित करना समाज में न्याय और समानता की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण है।
आज के सामाजिक जीवन में बाल सुरक्षा की स्थितियों पर चर्चा
आज के समाज में बाल सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक है। यद्यपि कानून और नीतियों में सुधार हुआ है, फिर भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- बाल श्रम: भारत और अन्य विकासशील देशों में बाल श्रम की समस्या अभी भी बनी हुई है। गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण बच्चे मजदूरी करने पर मजबूर होते हैं।
- यौन शोषण: बच्चों के यौन शोषण के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। परिवार, स्कूल और समाज में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- शिक्षा में असमानता: गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों को शिक्षा के समान अवसर नहीं मिलते। बालिका शिक्षा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
- बाल विवाह: ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में बाल विवाह की समस्या अभी भी प्रचलित है, जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: बच्चों को उचित स्वास्थ्य सेवाएं और पोषण उपलब्ध नहीं हो पाता, जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक वृद्धि प्रभावित होती है।
- आधुनिक चुनौतियाँ: डिजिटल युग में साइबर बुलिंग, ऑनलाइन शोषण और इंटरनेट के दुरुपयोग से बच्चों की सुरक्षा एक नया मुद्दा बन गया है।
बाल सुरक्षा एवं संरक्षण में योगदान
बाल सुरक्षा और संरक्षण में विभिन्न स्तरों पर योगदान की आवश्यकता है:
सरकारी स्तर:
- नीति निर्माण और कार्यान्वयन: बाल सुरक्षा के लिए सख्त कानून और नीतियाँ बनानी चाहिए और उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिए।
- शिक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रम: बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था करनी चाहिए।
- राहत और पुनर्वास कार्यक्रम: बाल शोषण और बाल मजदूरी से बचाए गए बच्चों के लिए पुनर्वास और राहत कार्यक्रम चलाने चाहिए।
गैर-सरकारी संगठन (NGOs):
- जागरूकता अभियान: बाल सुरक्षा और संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाना और समुदाय में जागरूकता बढ़ाना।
- समर्थन सेवाएँ: पीड़ित बच्चों को कानूनी सहायता, चिकित्सा सहायता और परामर्श सेवाएँ प्रदान करना।
- शिक्षा और प्रशिक्षण: समुदाय के लोगों को बाल सुरक्षा के मुद्दों पर शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना।
समुदाय और समाज:
- समुदाय का समर्थन: बाल सुरक्षा के मुद्दों पर समुदाय का समर्थन और सहभागिता महत्वपूर्ण है।
- संवेदनशीलता बढ़ाना: बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति समाज में संवेदनशीलता बढ़ाना।
- सामाजिक मूल्य: बच्चों के प्रति सकारात्मक सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देना।
परिवार:
- सुरक्षित वातावरण: बच्चों के लिए घर में एक सुरक्षित और पोषक वातावरण सुनिश्चित करना।
- शिक्षा और मार्गदर्शन: बच्चों को अच्छे मूल्य और शिक्षा प्रदान करना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- समर्थन और प्यार: बच्चों को भावनात्मक समर्थन और प्यार देना ताकि वे आत्मविश्वासी और सुरक्षित महसूस कर सकें।
निष्कर्ष
बाल सुरक्षा और संरक्षण समाज की समग्र प्रगति के लिए अनिवार्य हैं। सरकार, गैर-सरकारी संगठन, समुदाय, समाज, और परिवार सभी की सामूहिक भागीदारी से ही बच्चों को एक सुरक्षित, संरक्षित और पोषित वातावरण प्रदान किया जा सकता है। बाल सुरक्षा न केवल बच्चों के वर्तमान को सुरक्षित करती है बल्कि उनके भविष्य को भी उज्ज्वल बनाती है।
2. वैधानिक संस्थाअें की योगदान पर प्रकाश डालिए।
वैधानिक संस्थाएँ बच्चों के हकों की सुरक्षा और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन संस्थाओं के योगदान कुछ निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में होता है:
बाल संरक्षण प्राधिकरण (CWC): CWC बच्चों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। ये संस्थाएं अपने क्षेत्र में बच्चों की स्थिति का मूल्यांकन करती हैं और उनके हकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी कदम उठाती हैं। CWC बच्चों को उनके परिवार से अलग होने के बाद संरक्षण प्रदान करती हैं और उनके भविष्य को समर्थन देती हैं।
बाल गृहण और पुनर्वास संगठन: इन संस्थाओं का उद्देश्य वहां के बालकों को संरक्षण, उनके भोजन, वस्त्र, और शिक्षा की सुविधा प्रदान करना होता है जहां वे अपने परिवार से अलग हो गए हैं। इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाना होता है।
शिक्षा संस्थान: शिक्षा संस्थानों का भी बड़ा योगदान होता है बच्चों के विकास में। इन संस्थाओं में बच्चों को नैतिक, सामाजिक, और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाती है जो उनके सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण होती है।
बाल अधिकार संगठन (NGOs): अनेक बाल अधिकार संगठन भी बच्चों के हकों की रक्षा के लिए काम करते हैं। इन संगठनों का मुख्य उद्देश्य बालकों की समस्याओं को समझना, उन्हें समर्थन प्रदान करना, और उनके लिए न्याय की मांग करना होता है।
इन वैधानिक संस्थाओं की योगदान से बच्चों के हकों की सुरक्षा और संरक्षण में सकारात्मक परिवर्तन आता है और उन्हें स्थायी समाधान प्रदान करने में मदद मिलती है।
3. संस्थागत एक गैर संस्थागत सेवाओं को विस्तार से समझाईए?
संस्थागत और गैर-संस्थागत सेवाएँ
बाल संरक्षण और कल्याण के संदर्भ में, सेवाओं को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: संस्थागत सेवाएँ और गैर-संस्थागत सेवाएँ। इन दोनों का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा, देखभाल और विकास सुनिश्चित करना है, लेकिन उनके कार्यान्वयन और दृष्टिकोण में अंतर होता है।
संस्थागत सेवाएँ | गैर-संस्थागत सेवाएँ |
---|---|
परिभाषा: ऐसी सेवाएँ जो बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए औपचारिक संस्थानों में दी जाती हैं। | परिभाषा: ऐसी सेवाएँ जो बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए संस्थानों के बाहर, समुदाय और परिवार आधारित दृष्टिकोण से दी जाती हैं। |
उदाहरण: बाल गृह, अनाथालय, सुधार गृह, और आश्रय स्थल। | उदाहरण: गोद लेना, पालक देखभाल, सामुदायिक सहायता कार्यक्रम, और परिवार आधारित देखभाल। |
लाभ: संरचित वातावरण, निरंतर निगरानी, विशेषज्ञ देखभाल। | लाभ: पारिवारिक वातावरण, व्यक्तिगत देखभाल, सामुदायिक समर्थन। |
चुनौतियाँ: भावनात्मक अलगाव, व्यक्तिगत ध्यान की कमी, संस्थानिकरण के जोखिम। | चुनौतियाँ: परिवार की तैयारियों और समर्थन की आवश्यकता, निगरानी की जटिलता। |
संस्थागत सेवाएँ
परिभाषा: ऐसी सेवाएँ जो बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए औपचारिक संस्थानों में दी जाती हैं। यह सेवाएँ बच्चों को एक संरचित और नियंत्रित वातावरण प्रदान करती हैं, जहां उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी होते हैं।
उदाहरण:
- बाल गृह (Children's Homes): ऐसे घर जहां अनाथ, परित्यक्त या असुरक्षित बच्चे रहते हैं और उनकी देखभाल की जाती है।
- अनाथालय (Orphanages): ऐसे स्थान जहां अनाथ बच्चों को आश्रय, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
- सुधार गृह (Juvenile Homes): ऐसे संस्थान जहां कानून का उल्लंघन करने वाले नाबालिग बच्चों को रखा जाता है और उनका सुधार किया जाता है।
- आश्रय स्थल (Shelters): ऐसे स्थल जहां अस्थायी रूप से बच्चों को सुरक्षा और देखभाल प्रदान की जाती है।
गैर-संस्थागत सेवाएँ
परिभाषा: ऐसी सेवाएँ जो बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए संस्थानों के बाहर, समुदाय और परिवार आधारित दृष्टिकोण से दी जाती हैं। यह सेवाएँ बच्चों को पारिवारिक और सामुदायिक वातावरण में देखभाल प्रदान करती हैं, जिससे उनका समग्र विकास हो सके।
उदाहरण:
- गोद लेना (Adoption): ऐसा प्रक्रिया जिसके तहत बच्चे को स्थायी रूप से एक नए परिवार में शामिल किया जाता है, जहां उसे माता-पिता का प्यार और सुरक्षा मिलती है।
- पालक देखभाल (Foster Care): ऐसी व्यवस्था जहां बच्चे को अस्थायी रूप से एक पालक परिवार में रखा जाता है, जब तक कि उसके मूल परिवार की स्थिति सुधार नहीं जाती।
- सामुदायिक सहायता कार्यक्रम (Community Support Programs): ऐसे कार्यक्रम जो समुदाय में बच्चों और परिवारों को समर्थन और संसाधन प्रदान करते हैं।
- परिवार आधारित देखभाल (Family-Based Care): ऐसी व्यवस्था जहां बच्चों को उनके विस्तारित परिवार या अन्य परिचितों के साथ रखा जाता है, जो उनकी देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
लाभ और चुनौतियाँ
संस्थागत सेवाओं के लाभ:
- संरचित वातावरण: बच्चों को एक नियंत्रित और संरचित वातावरण मिलता है।
- निरंतर निगरानी: बच्चों की निरंतर निगरानी की जाती है।
- विशेषज्ञ देखभाल: प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा देखभाल प्रदान की जाती है।
संस्थागत सेवाओं की चुनौतियाँ:
- भावनात्मक अलगाव: बच्चे परिवार और समुदाय से अलगाव महसूस कर सकते हैं।
- व्यक्तिगत ध्यान की कमी: सभी बच्चों को व्यक्तिगत ध्यान नहीं मिल पाता।
- संस्थानिकरण के जोखिम: बच्चों में संस्थानिकरण की भावना उत्पन्न हो सकती है।
गैर-संस्थागत सेवाओं के लाभ:
- पारिवारिक वातावरण: बच्चों को पारिवारिक वातावरण मिलता है।
- व्यक्तिगत देखभाल: बच्चों को व्यक्तिगत देखभाल और ध्यान मिलता है।
- सामुदायिक समर्थन: समुदाय से समर्थन और संसाधन मिलते हैं।
गैर-संस्थागत सेवाओं की चुनौतियाँ:
- परिवार की तैयारियों और समर्थन की आवश्यकता: बच्चों की देखभाल के लिए परिवारों की तैयारी और समर्थन की आवश्यकता होती है।
- निगरानी की जटिलता: बच्चों की सुरक्षा और देखभाल की निगरानी जटिल हो सकती है।
निष्कर्ष
संस्थागत और गैर-संस्थागत सेवाएँ दोनों ही बच्चों की सुरक्षा और देखभाल के लिए महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक दृष्टिकोण के अपने लाभ और चुनौतियाँ हैं। बच्चों की सर्वोत्तम हित में, इन सेवाओं का चयन उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, परिस्थितियों और सामाजिक संदर्भ के आधार पर किया जाना चाहिए। संस्थागत सेवाएँ उन बच्चों के लिए महत्वपूर्ण हैं जिन्हें तत्काल सुरक्षा और संरचित वातावरण की आवश्यकता है, जबकि गैर-संस्थागत सेवाएँ बच्चों को पारिवारिक और सामुदायिक समर्थन प्रदान करने में सहायक होती हैं।
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