इकाई प्रथम
सामाजिक शोध - अर्थ, खोज एवं अनुसंधान
1. अनुसन्धान और सामाजिक अनुसन्धान में क्या अन्तर है।
अनुसंधान और सामाजिक अनुसंधान में यह अंतर होता है कि अनुसंधान एक व्यापक शोध प्रक्रिया है जो किसी विषय की गहराई में जाकर नई ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करती है, जबकि सामाजिक अनुसंधान संबंधित सामाजिक मुद्दों, समस्याओं, और प्रश्नों का अध्ययन करके समाज को सुधारने और विकास करने के लिए ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है।
2. सामाजिक अनुसन्धान की परिभाषित कीजिए।
अनुसंधान और सामाजिक अनुसंधान में यह अंतर होता है कि अनुसंधान एक व्यापक शोध प्रक्रिया है जो किसी विषय की गहराई में जाकर नई ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करती है, जबकि सामाजिक अनुसंधान संबंधित सामाजिक मुद्दों, समस्याओं, और प्रश्नों का अध्ययन करके समाज को सुधारने और विकास करने के लिए ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है।
3. सामाजिक अनुसन्धान के प्रेरक तत्वों का उल्लेख करिए।
सामाजिक अनुसंधान के प्रेरक तत्वों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
सामाजिक न्याय और इंसानी हित: सामाजिक अनुसंधानकर्ता को सामाजिक न्याय को सुधारने और इंसानी हित को बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
समाज में सुधार की आवश्यकता: सामाजिक अनुसंधानकर्ता को सामाजिक मुद्दों और समस्याओं को समझने और समाधान की आवश्यकता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
नवीनता और आविष्कार की ताकत: सामाजिक अनुसंधानकर्ता को नए विचार, आविष्कार और उपायों की खोज में प्रेरित करता है जो सामाजिक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
4. अनुसंधान के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
5. अनुसन्धाकर्त्ता के गुणों पर प्रकाष डालिए।
अनुसंधाकर्त्ता के गुण:
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: अनुसंधाकर्त्ता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण होना चाहिए, यानी उन्हें विषय में विशेषज्ञता और गहन ज्ञान होना चाहिए।
तजुर्बेकारी: अनुसंधाकर्त्ता को तजुर्बेकारी होनी चाहिए, जिससे वे अद्यातन और आधुनिकता के साथ नवीनता और आविष्कार को प्रोत्साहित कर सकें।
तत्परता और समर्पण: अनुसंधाकर्त्ता को तत्परता और समर्पण के साथ काम करना चाहिए, जिससे वे उच्चतम गुणवत्ता वाले अनुसंधान का निर्माण कर सकें।
तटस्थता और विचारशीलता: अनुसंधाकर्त्ता को तटस्थता और विचारशीलता के साथ काम करनी चाहिए, जिससे उन्हें नए और अलग-थलग दृष्टिकोणों से समस्याओं को समझने की क्षमता होती है।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
इकाई द्वितीय
सामाजिक शोध में चरणों का क्रम
1. वस्तुनिष्ठता को शोध के संदर्भ मे स्पष्ट कीजिए।
वस्तुनिष्ठता शोध के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मापदंड है। इसका अर्थ होता है कि शोध का विषय या विषय संग्रह की सामग्री की सटीकता, प्रामाणिकता और मान्यता पर आधारित होनी चाहिए। वस्तुनिष्ठता के आधार पर ही शोध के परिणामों की विश्वसनीयता और महत्वपूर्णता का मूल्यांकन होता है।
शोध के दौरान, वस्तुनिष्ठता साधारणतया निम्नलिखित पहलुओं पर आधारित होती है:
1. स्रोतों की गुणवत्ता: शोध करने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्रोतों की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जाता है। यह स्रोतों के प्रामाणिकता, प्रमाणस्वीकृतता, निरंतरता और मान्यता के आधार पर होता है।
2. तकनीकी और वैधानिक मापदंड: शोध के लिए उपयोग की गई तकनीकों और वैधानिक मापदंडों की वस्तुनिष्ठता मापी जाती है। यह शोध में उपयोग की गई विधियों, मापन यंत्रों और प्रक्रियाओं के वैधता, यथार्थता और प्रभावों की निर्धारण करता है।
3. परीक्षण और पुनर्गणना: अनुसंधान के परिणामों की वस्तुनिष्ठता को सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण और पुनर्गणना की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। इससे प्राप्त नतीजों की सटीकता, पुनरावृत्ति और पुष्टि होती है।
4. विश्वसनीयता के नियम: शोध के विश्वसनीयता को निर्धारित करने के लिए नियमों, गुणवत्ता मानकों और विज्ञान सामान्यों का पालन किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि शोध के परिणामों को अन्य वैज्ञानिकों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है।
वस्तुनिष्ठता शोध के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विज्ञानिक समुदाय में नए ज्ञान के निर्माण और विकास को सुनिश्चित करता है। इसके माध्यम से विज्ञानिक समुदाय वैधानिकता, प्रामाणिकता और नवीनता की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करता है। वस्तुनिष्ठता से शोध के परिणामों का विश्वसनीयता और मान्यता का मानकीकरण होता है, जो विज्ञानिक समाज के विकास और उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2. शून्य उपकल्पना क्या है?
क्षेत्र में शून्य उपकल्पना एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसे आयकर या आपत्तिजनक अनुभवों के अभाव की स्थिति के रूप में व्याख्या किया जा सकता है। यह सिद्धांत कहता है कि जब आप किसी चीज़ की अभाव पर चर्चा कर रहे होते हैं, तो आपको उस चीज़ के अस्तित्व के साक्ष्य प्रदान करने की आवश्यकता होती है। शून्य उपकल्पना का उपयोग विज्ञान, शोध, योजनाबद्धता और विचारों के क्षेत्र में किया जाता है। इसे उपयोग करके, आप एक मान्यता को पुष्टि करते हैं जब तक उसके बारे में प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, और आप समय और संसाधनों को बचाते हैं जो उसे खोजने में लग सकते हैं।
3. गुणात्मक शोध से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
गुणात्मक शोध का आशय होता है किसी विषय या विमर्श के गुणों, विशेषताओं, या लक्षणों को विश्लेषण करना और समझना। इस प्रकार का शोध सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र, व्यापार, संगणक विज्ञान, विज्ञान और तकनीक आदि कई क्षेत्रों में किया जाता है।
गुणात्मक शोध के माध्यम से, शोधकर्ता विभिन्न गुणों और विशेषताओं को मापने और मूल्यांकन करते हैं, जैसे कि आंकड़े, प्रमाण, तार्किक प्रमाण, प्रश्नों के उत्तर, और तुलनात्मक विश्लेषण। इसके माध्यम से शोधकर्ता विषय के गहन अध्ययन के आधार पर तथ्यों और प्रमाणों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसके आधार पर, वे नए सिद्धांतों को विकसित कर सकते हैं, संबंधों को स्पष्ट कर सकते हैं, और सूचना को संकलित करके सामाजिक, मानसिक, व्यावसायिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में नई ज्ञानमयी योजनाओं और नीतियों का निर्माण कर सकते हैं। गुणात्मक शोध का मुख्य उद्देश्य विषय की गहन समझ और उसके गुणों की महत्वपूर्णता को प्रकट करना होता है।
4. शोध के संदर्भ मे परिसीमन क्यों आवश्यक है? लिखिए।
शोध के संदर्भ में परिसीमन का महत्वपूर्ण आवश्यकता होता है। यहां नीचे कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं:
1. संसाधनों की सीमा: एक शोध अभियान के दौरान, समय, वित्त, मानव संसाधन और अन्य संसाधनों की सीमा होती है। परिसीमन अनुभाग शोधकर्ताओं को समय, संसाधन और शोध के परिणामों को निर्धारित संकेतों और परियोजनाओं के अंतर्गत रखने में मदद करता है।
2. विषय की परिधि: एक शोध का विषय असीमित हो सकता है, लेकिन परिसीमन उसे एक मान्य और सीमित क्षेत्र में रखने में सहायता करता है। यह शोधकर्ताओं को विशेषताओं के साथ एक महत्वपूर्ण विषय की पहचान करने और अन्य क्षेत्रों के संदर्भ में उसे बाध्यतापूर्वक सीमित करने में मदद करता है।
3. परिणामों की विभाजन: परिसीमन शोधकर्ताओं को उनके शोध के परिणामों को उचित तरीके से विभाजित करने में सहायता करता है। यहां उदाहरण के रूप में, समय, क्षेत्र, या विषय के आधार पर परिणामों को संगठित किया जा सकता है, जो विभिन्न अध्ययनों और प्रदर्शन के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
4. अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन: परिसीमन अंतरराष्ट्रीय शोध एवं विज्ञान समुदायों के मानकों का पालन करने में मदद करता है। इससे शोध के अभियान को एक मान्यता प्राप्त और विश्वस्तरीय मानकों के अनुरूप बनाने में सहायता मिलती है।
5. नेतृत्व और आपातकालीन योजना: परिसीमन शोध के अभियान में नेतृत्व को बढ़ावा देता है और आपातकालीन योजनाओं को संचालित करने में मदद करता है। इससे संगठित तरीके से विज्ञानिक और अनुसंधान प्रदर्शन के लिए उचित व्यवस्था और नियंत्रण सुनिश्चित होता है।
इन प्रमुख कारणों के कारण, शोधकर्ताओं को परिसीमन का पालन करना आवश्यक होता है ताकि उनके अभियान को संरचित, मान्यता प्राप्त और परिणामशील बनाने में सहायता मिले।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
इकाई तृतीय
शोध प्रारूप - अवधारणा, परिभाषा एवं उद्देश्य
1. अवलोकन पद्धति के गुणों पर प्रकाश डालिये।
अवलोकन पद्धति शोध में एक महत्वपूर्ण तकनीक है जो विषय को गहराई से अध्ययन करने और विश्लेषण करने का माध्यम प्रदान करती है। इसके कुछ मुख्य गुण हैं:
1. प्रभावी आंकलन: अवलोकन पद्धति की एक महत्वपूर्ण गुणवत्ता है कि यह आंकलन के लिए प्रभावी होती है। यह प्रयोगशाला और मार्गदर्शित अवलोकन के माध्यम से साक्ष्य का संग्रह करने की क्षमता प्रदान करती है और इसे विश्लेषित करने के लिए विशेष तकनीकी योग्यता प्रदान करती है।
2. पूर्णता: अवलोकन पद्धति में पूर्णता एक महत्वपूर्ण गुण है। इसमें संग्रहीत डेटा के तत्वों की पूर्णता का ध्यान रखा जाता है, जिससे प्राप्त नतीजों की मान्यता और विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है।
3. प्रतिस्थापित करने योग्यता: अवलोकन पद्धति में प्रतिस्थापने योग्यता की मौजूदगी होती है। यह एक तकनीकी योग्यता प्रदान करती है जो शोधकर्ताओं को पूर्णतापूर्वक और स्थायी ढंग से नवीनतम डेटा को प्रतिस्थापित करने की अनुमति देती है।
4. प्रतिबद्धता: अवलोकन पद्धति में प्रतिबद्धता एक महत्वपूर्ण गुण है। यह शोधकर्ताओं को एक सटीक और निरंतर प्रक्रिया का अनुसरण करने की अनुमति देती है और इसे बार-बार लागू करने के लिए एक मानक प्रोटोकॉल प्रदान करती है।
5. प्राधिकरण: अवलोकन पद्धति के गुणों में से एक है प्राधिकरण का होना। इसके माध्यम से शोधकर्ताओं को संग्रहीत डेटा के बारे में पूर्ण प्राधिकरण मिलता है, जिससे वे अपने अभ्यास के परिणामों को प्रकाशित करने और अपने शोध को नया या आधारभूत ज्ञान जोड़ने के लिए अधिक प्राधिकरण प्राप्त करते हैं।
ये गुण अवलोकन पद्धति के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रकाश में लाते हैं और शोधकर्ताओं को उच्च गुणवत्ता और विश्वसनीयता के साथ अध्ययन करने के लिए मदद करते हैं।
2. सहभागी और असहभागी अवलोकन मे अंतर स्पष्ट कीजिए।
सहभागी और असहभागी अवलोकन दो विभिन्न प्रकार के अवलोकन पद्धतियों को दर्शाते हैं। यहां दोनों के बीच मुख्य अंतर है:
सहभागी अवलोकन:सहभागी अवलोकन में, शोधकर्ता सीधे और सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और अवलोकन के प्रक्रिया में शामिल होते हैं। वे संग्रहीत डेटा का निरीक्षण करते हैं, विश्लेषण करते हैं, नतीजों की टिप्पणियाँ और संकेत देते हैं और अंतिम रूप देते हैं। सहभागी अवलोकन में शोधकर्ता अपने विचारों, समझोतों और अभिप्रेत नतीजों के साथ प्रक्रिया को संचालित करते हैं।
असहभागी अवलोकन:असहभागी अवलोकन में, शोधकर्ता संग्रहीत डेटा को निरीक्षण करते हैं और इसे विश्लेषण करते हैं, लेकिन वे प्रक्रिया में सीधे शामिल नहीं होते हैं। इस प्रकार के अवलोकन में, शोधकर्ताओं की भूमिका प्रमुखता से संग्रहीत डेटा की निरीक्षण और विश्लेषण करने की होती है, लेकिन प्रक्रिया के नियंत्रण और संचालन का प्रमुख भाग नहीं होते हैं।
मुख्य अंतर:मुख्य अंतर सहभागी और असहभागी अवलोकन के बीच शोधकर्ताओं की भूमिका और प्रक्रिया के संचालन का होता है। सहभागी अवलोकन में शोधकर्ता सक्रियता और संचालन में भाग लेते हैं, जबकि असहभागी अवलोकन में शोधकर्ता अपने डेटा के संग्रह, निरीक्षण और विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन प्रक्रिया के संचालन में भागीदार नहीं होते हैं।
3. दैवनिदर्शन के कोई तीन उदाहरण दीजिए।
दैवनिदर्शन विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह अंतर्दृष्टि, नियमितता और आध्यात्मिकता के माध्यम से एक ईश्वरीय अथवा अद्वैतवादी सत्य को ज्ञान करने की प्रक्रिया को संकेत करता है। यहां तीन उदाहरण दिए गए हैं:
1. हिन्दू दैवनिदर्शन: हिन्दू धर्म में दैवनिदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। यह धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा ईश्वर, ब्रह्मन और परमात्मा के प्रति विश्वास को ज्ञात करने का प्रयास करती है। हिन्दू दैवनिदर्शन में, जीवन का आदिकारण, कर्म और मोक्ष जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। वेदान्त, योग, सांख्य, न्याय, वैशेषिक और मीमांसा जैसे विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों के माध्यम से दैवनिदर्शन को व्यक्त किया जाता है।
2. इस्लामी दैवनिदर्शन: इस्लाम धर्म में दैवनिदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। इस्लामी दैवनिदर्शन ईश्वर के विचार को संकेत करता है, जो अल्लाह के रूप में जाना जाता है। इस्लाम में, कुरान शरीफ ईश्वर के वचन के रूप में मान्यता प्राप्त है और उसे मार्गदर्शन माना जाता है। इस्लामी दैवनिदर्शन में इमाम, नमाज, रोजा, हज्ज और जकात जैसे धार्मिक अभ्यासों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
3. बौद्ध दैवनिदर्शन: बौद्ध धर्म में दैवनिदर्शन आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मबोध की प्राप्ति पर आधारित है। यह मानते हैं कि सत्य और आनंद का प्राप्त करने के लिए मन को शांत करना और बुद्धत्व की प्राप्ति करना आवश्यक है। बौद्ध दैवनिदर्शन में मूल्यवाद, चतुरार्य सत्य, अनात्मवाद और प्रतीत्यसमुत्पाद जैसे सिद्धांतों को प्रमुखता दी जाती है।
ये तीन उदाहरण विभिन्न धर्मिक और दार्शनिक परंपराओं में पाए जाने वाले दैवनिदर्शन के प्रमुख उदाहरण हैं। हर एक दैवनिदर्शन अपनी विशेषताओं और धार्मिक सिद्धांतों के साथ अलग-अलग तत्वों पर भरोसा करता है।
4. निदर्शन पद्धति क्या है?
निदर्शन पद्धति एक विज्ञान क्षेत्रीय अध्ययन पद्धति है जो दृष्टिपथ के माध्यम से आवश्यक डेटा और जानकारी को संकलित करती है। यह एक सिद्धांतमय अध्ययन प्रणाली है जिसमें प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों से सूचना को अध्ययन किया जाता है ताकि नई ज्ञान की गठन की संभावना हो सके। निदर्शन पद्धति में विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण और विवेचना की जाती है, और उनके द्वारा प्राप्त डेटा के आधार पर सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है।
निदर्शन पद्धति का उद्देश्य नए विचारों, सिद्धांतों और सूचनाओं की खोज करना होता है जो पहले से ही उपलब्ध ज्ञान के आधार पर आविष्कार किए जाते हैं। इस पद्धति में विशेषज्ञों का आदेशिक संगठन किया जाता है जिसके अनुसार वे विषय में अध्ययन करते हैं, सूचना को विश्लेषण करते हैं और नई ज्ञान की रचना करते हैं। यह पद्धति अनुसंधान की गतिविधियों, विचारों और सिद्धांतों को संग्रहीत करने में मदद करती है और नये और मुख्यतः संशोधनात्मक प्रश्नों के समाधान को संभव बनाती है।
निदर्शन पद्धति का उपयोग विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरी, सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान, आर्थिक विज्ञान, इतिहास, और अन्यों में। यह उन विज्ञान क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक मान्यता प्राप्त प्रणाली के माध्यम से अद्यतित और विस्तृत ज्ञान प्रदान करती है ताकि वे उच्चतर शिक्षा, अनुसंधान और नवीनतम विकास को संभव बना सकें।
5. व्यक्तिगत अध्ययन की सीमाएं लिखिए।
व्यक्तिगत अध्ययन एक अध्ययन प्रणाली है जो एक व्यक्ति या व्यक्तियों की विशेषताओं, अनुभवों, और व्यवहारों का विश्लेषण करती है। इसके द्वारा व्यक्ति अपने आप को और अपनी व्यक्तिगतता को समझता है और सामरिक, मानसिक, सामाजिक या व्यावसायिक क्षेत्रों में स्वयं को समर्पित करता है।
व्यक्तिगत अध्ययन की सीमाएं निम्नलिखित हो सकती हैं:
1. व्यक्तिगत उपस्थिति: व्यक्तिगत अध्ययन व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ संपर्क के आधार पर होता है। इसमें व्यक्तिगत साक्षात्कार, सर्वेक्षण, अवलोकन, और प्रयोग शामिल हो सकते हैं।
2. अवधि: व्यक्तिगत अध्ययन की अवधि व्यक्ति या व्यक्तियों की आवश्यकताओं, प्रश्नों, और शोध के आधार पर निर्धारित की जाती है। यह संक्षेप में कुछ घंटों से कई महीनों तक की अवधि हो सकती है।
3. संख्यात्मक सीमा: व्यक्तिगत अध्ययन में व्यक्तियों की संख्या सीमित होती है। यह आधारभूतता को बनाए रखने और अध्ययन को प्रबंधित करने में मदद करता है।
4. विषय सीमा: व्यक्तिगत अध्ययन एक विशेषता, समस्या, या अवधारणा के संदर्भ में होता है। यह विषय को सीमित और निर्दिष्ट करने में मदद करता है।
5. व्याप्ति: व्यक्तिगत अध्ययन एक व्यक्ति या व्यक्तियों के संदर्भ में होता है और सामरिक, मानसिक, सामाजिक, या व्यावसायिक क्षेत्रों को सीमित करता है। इससे उनकी व्यक्तिगतता और अनुभवों का विश्लेषण किया जाता है।
यह सीमाएं व्यक्तिगत अध्ययन के माध्यम से अध्ययन के परिणामों को संरचित, मान्यता प्राप्त, और सीमित करने में मदद करती हैं।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
इकाई चतुर्थ
तथ्यों का स्वरूप एवं प्रकार
1. प्राथमिक स्रोतों का अर्थ लिखकर दो उदाहरण दीजिए।
प्राथमिक स्रोतें विशेषज्ञों या अधिकृत जनसंचार के द्वारा प्रकाशित जानकारी और डेटा होते हैं जिन्हें सीधे और मौलिक स्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त किया जाता है। ये स्रोत उद्योग, शिक्षा, सरकार, अनुसंधान संगठन, आंतरजाल, पत्रिकाएँ, पुस्तकालयों, और सरकारी रिपोर्ट्स में शामिल हो सकते हैं। नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं:
1. वैज्ञानिक पत्रिकाएँ: प्राथमिक स्रोत के रूप में विज्ञानिक पत्रिकाएँ उपयोगी होती हैं। इनमें वैज्ञानिक अध्ययन, अनुसंधान परिणाम, विश्लेषण, और नवीनतम खोज की जानकारी होती है। इसके उदाहरण में 'Nature', 'Science', 'Cell', 'The New England Journal of Medicine' और 'Journal of Applied Psychology' शामिल हो सकते हैं।
2. सरकारी रिपोर्ट्स: सरकारी रिपोर्ट्स भी प्राथमिक स्रोत के रूप में उपयोगी होते हैं। ये सरकारी विभागों द्वारा प्रकाशित की जाती हैं और नीतियों, आंकड़ों, अध्ययनों, और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, 'World Health Organization (WHO)' और 'United Nations Development Programme (UNDP)' द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट्स इस श्रेणी में आते हैं।
ये उदाहरण प्राथमिक स्रोतों के एक छोटे से आंशिक सूची हैं। इन स्रोतों का उपयोग करके विशेषज्ञों को आपूर्ति और विश्लेषण करने का अवसर मिलता है और इस प्रकार उनकी स्थिरता और प्रमाणित करने में मदद मिलती है।
2. द्वितीयक स्रोतों का अर्थ लिखकर दो उदाहरण दीजिए।
द्वितीयक स्रोतें उन स्रोतों को संकलित करती हैं जिन्हें प्राथमिक स्रोतों द्वारा प्रकाशित जानकारी का पुनर्निर्माण, संगठन, व्याख्या, विश्लेषण, अभिप्रेत या समीक्षा करने का अवसर प्रदान किया जाता है। इन स्रोतों का उपयोग करके विशेषज्ञों को विवेचना, मुल्यांकन और अध्ययन करने का अवसर मिलता है। यहां दो उदाहरण दिए जा रहे हैं:
1. विश्लेषणात्मक लेख: द्वितीयक स्रोत के रूप में विश्लेषणात्मक लेख उपयोगी होते हैं। इनमें विशेषज्ञों द्वारा उनकी विशेषज्ञता के आधार पर विश्लेषण, नवीनतम अध्ययन, अभिप्रेत विचार और मतांकन की जानकारी होती है। ये लेख वैज्ञानिक जर्नलों, समीक्षा लेखों, पुस्तकों, और अन्य प्रकाशनों में प्रकाशित होते हैं।
2. व्याख्यात्मक संगठन: द्वितीयक स्रोत के रूप में व्याख्यात्मक संगठनों का उपयोग किया जाता है। ये संगठन विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न विषयों पर संग्रहीत जानकारी, रिपोर्टें, अध्ययन और विश्लेषण प्रदान करते हैं। उनके द्वारा जारी की जाने वाली प्रकाशनों और अध्ययनों के माध्यम से विश्वस्तरीय तथ्यों और जानकारी का प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में, एक विज्ञानी संगठन जैसे 'अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (National Academy of Sciences)' या एक विचारधारा संगठन जैसे 'एम्स्टरडैम शोध परिषद (Amsterdam Research Council)' शामिल हो सकते हैं।
ये उदाहरण द्वितीयक स्रोतों के एक छोटे से आंशिक सूची हैं। इन स्रोतों का उपयोग करके विशेषज्ञों को विवेचना, मुल्यांकन और अध्ययन करने का अवसर मिलता है और इस प्रकार उनकी स्थिरता और प्रमाणित करने में मदद मिलती है।
3. प्रश्नावली के दो प्रकार लिखिए।
प्रश्नावली (Questionnaire) एक मानव संवाद का महत्वपूर्ण माध्यम है जो रिसर्च, अध्ययन और सर्वेक्षण के लिए प्रयोग किया जाता है। यह जांचने का एक संगठित तरीका है जिसमें प्रश्नों की सेट होती है जो व्यक्ति से पूछे जाते हैं ताकि उनसे जानकारी, मत, अनुभव, या विचार प्राप्त किए जा सकें। इसके दो प्रमुख प्रकार हैं:
1. संदर्भित प्रश्नावली (Structured Questionnaire): इस प्रकार की प्रश्नावली में प्रश्नों की संरचना और क्रम निश्चित होते हैं। प्रत्येक प्रश्न के लिए एक स्थिर उत्तर प्रारूप या स्केल होती है। संदर्भित प्रश्नावली विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाती है और उसका उपयोग विशेष रूप से डेटा कलेक्शन और सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए किया जाता है।
2. अनुरूप प्रश्नावली (Unstructured Questionnaire): इस प्रकार की प्रश्नावली में प्रश्नों की संरचना निर्धारित नहीं होती है और उत्तर विकल्पों की सीमा भी नहीं होती है। इसमें संवादित प्रश्न पूछे जाते हैं, जिससे व्यक्ति की सोच, अनुभव, और विचारों को समझने में मदद मिलती है। अनुरूप प्रश्नावली का उपयोग विस्तृत और विशद जानकारी प्राप्त करने, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को समझने और विचारों की गहराई को छानने के लिए किया जाता है।
4. अनुसूची के दो प्रकार लिखिए।
अनुसूची (Schedule) एक योजना या निर्देशिका होती है जो विभिन्न कार्यों, गतिविधियों, यात्राओं, आदि को समय-सारणी में व्यवस्थित करती है। यह किसी भी कार्यक्रम या परियोजना के नियोजन और प्रबंधन को सुनिश्चित करने में मदद करती है। यहां दो प्रमुख प्रकार की अनुसूचियां हैं:
1. निर्देशिकात्मक अनुसूची (Prescriptive Schedule): इस प्रकार की अनुसूची में, समय-सारणी और कार्यक्रम का विस्तारित निर्देश दिया जाता है। यहां विशिष्ट गतिविधियों, कार्यों और कार्रवाइयों के लिए समय-सीमाएं, आवश्यकताएं, और प्रियताएं निर्धारित की जाती हैं। निर्देशिकात्मक अनुसूची आमतौर पर परियोजना प्रबंधन में उपयोग की जाती है, जहां किसी कार्यक्रम की विस्तारित योजना बनाने और प्रदर्शन को मानदंडों के आधार पर मापने की आवश्यकता होती है।
2. वाणिज्यिक अनुसूची (Commercial Schedule): इस प्रकार की अनुसूची में, व्यावसायिक या वाणिज्यिक गतिविधियों को समय-सारणी में निर्दिष्ट किया जाता है। यह उद्योग, व्यापार, प्रोजेक्ट व्यवस्था आदि के लिए उपयोग होती है। वाणिज्यिक अनुसूची में आमतौर पर उत्पादन, आपूर्ति, विपणन, भुगतान, आदि के लिए निर्दिष्ट समय-सीमाएं होती हैं जो व्यावसायिक प्रक्रियाओं को संचालित करने में मदद करती हैं।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
इकाई पंचम
सामाजिक शोध एवं सांख्यिकी - महत्व एवं सीमायें
1. सांख्यिकी को परिभाषित कीजिए |
सांख्यिकी (Statistics) एक गणितीय विज्ञान है जो आंकड़ों, आंकड़ावळी, विश्लेषण और इंफरेंसियल टेक्निक्स के अध्ययन के माध्यम से डेटा को संगठित, वर्णन, प्रयोग, और निष्कर्ष निकालने के लिए प्रयुक्त होती है। इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में जैसे विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, व्यापार, स्वास्थ्य, सार्वजनिक नीति, और अन्य क्षेत्रों में डेटा के विश्लेषण और निष्कर्ष निकालने के लिए किया जाता है।
सांख्यिकी में, डेटा को संग्रहीत, संगठित, और वर्णनित किया जाता है। इसके लिए सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग किया जाता है जैसे कि अवकलन, वर्गीकरण, सारगर्भित मान, समय क्रम, और तत्वांकन। इन तकनीकों का उपयोग डेटा को संगठित करने, प्रतिष्ठित करने, और प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है ताकि निष्कर्ष निकालने में सहायता मिले। सांख्यिकी में विश्लेषणात्मक और सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग किया जाता है जैसे कि प्रतिष्ठित मानक, समान्यतापूर्वक विचलन, सम्पादित मानक, और संबंधात्मकता के निर्धारण के लिए।
सांख्यिकी डेटा के संग्रह, विश्लेषण, और निष्कर्ष निकालने के माध्यम से नई जानकारी प्राप्त करने में मदद करती है और निर्णयों को आधारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, और नीतिगत मुद्दों पर गभीर प्रभाव डालती है और समाज को डेटा के माध्यम से बेहतर निर्णय लेने में सहायता करती है।
2. वर्गीकरण क्या है |
वर्गीकरण (Classification) एक सांख्यिकीय तकनीक है जिसका उपयोग डेटा को विभिन्न वर्गों या समूहों में संगठित करने के लिए किया जाता है। इसमें डेटा पैटर्न और गुणधर्मों को आधार बनाकर विभिन्न वर्गों में डेटा को विभाजित किया जाता है। वर्गीकरण का उद्देश्य नये डेटा पॉइंट को पहचानने और उसे सही वर्ग में शामिल करने में मदद करना होता है।
वर्गीकरण के लिए विभिन्न अल्गोरिदम और मॉडल्स का उपयोग किया जाता है जैसे कि लॉजिस्टिक रिग्रेशन, न्यूरल नेटवर्क्स, निकटता विश्लेषण, और डिस्क्रिमिनेंट विश्लेषण। ये अल्गोरिदम डेटा में निहित नियमों और गुणधर्मों को समझते हैं और उनके आधार पर उन्हें विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करते हैं।
वर्गीकरण का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है जैसे कि मशीन लर्निंग, विज्ञान, व्यापार, स्वास्थ्य, और सामाजिक विज्ञान। इससे डेटा के विभाजन और वर्गीकरण के माध्यम से पैटर्न, रिश्तेदारी, और विशेषताओं का पता लगाया जा सकता है जो उस वर्ग के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
3. सारणीयन क्यों आवश्यक है?
सारणीयन (Tabulation) एक विधि है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के डेटा को संगठित और व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है। यह एक आँकड़ों, गुणधर्मों या विशेषताओं को वर्गीकृत करने की प्रक्रिया है, जिससे डेटा के बीच नियमितता और तालिका की रूपरेखा बनती है।
सारणीयन के द्वारा, डेटा को एक तालिका या सारणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें पंक्तियाँ और स्तंभ होते हैं। पंक्तियाँ वस्तुओं, घटनाओं या समय-संबंधी यूनिट को प्रतिष्ठित करती हैं, जबकि स्तंभ सांख्यिकीय गुणधर्मों, विशेषताओं या परिणामों को प्रतिष्ठित करते हैं।
सारणीयन का उपयोग निम्नलिखित कारणों के लिए आवश्यक होता है:
1. डेटा का संगठन: सारणीयन डेटा को संगठित करने में मदद करता है। यह डेटा को पंक्तियों और स्तंभों के माध्यम से व्यवस्थित करता है, जिससे डेटा के बीच नियमितता और संगतता प्रकट होती है।
2. विश्लेषण की सुविधा: सारणीयन डेटा के विश्लेषण में मदद करता है। यह डेटा को विभिन्न परामर्शिक गुणधर्मों, प्रतिष्ठित विशेषताओं या परिणामों के आधार पर वर्गीकृत करके डेटा का विश्लेषण आसान बनाता है।
3. तुलना की सुविधा: सारणीयन डेटा के तुलनात्मक विश्लेषण में मदद करता है। यह डेटा को अलग-अलग परामर्शिक यूनिट के बीच तुलना करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे विभिन्न संबंधों, पैटर्नों और वास्तविकताओं का पता लगाया जा सकता है।
4. दर्शाव संचालन: सारणीयन डेटा को प्रदर्शित करने में मदद करता है। यह डेटा को एक स्पष्ट और संगठित तालिका रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे डेटा को सरलता से समझा जा सकता है और जरूरी जानकारी प्रदर्शित की जा सकती है।
सारणीयन के माध्यम से, डेटा को संगठित किया, विश्लेषित किया और प्रदर्शित किया जा सकता है, जिससे डेटा की समझ, तुलना और व्याख्या में मदद मिलती है।
4. प्रतिवेदन लेखन की विशेषताएं लिखिए |
प्रतिवेदन लेखन एक महत्वपूर्ण लेखन कौशल है जिसका उपयोग विभिन्न संगठनों, संस्थाओं और व्यवसायों में जानकारी के प्रसार और संचालन के लिए किया जाता है। प्रतिवेदन लेखन की विशेषताएं निम्नलिखित हो सकती हैं:
1. संक्षिप्तता: प्रतिवेदन लेखन का मुख्य लक्ष्य संक्षिप्तता होती है। यह लेखन कौशल ज्ञाति और जानकारी को एक संक्षिप्त, स्पष्ट और अवलोकनात्मक ढंग से प्रस्तुत करने का क्षमता विकसित करता है।
2. तालिका और संरचना: प्रतिवेदन लेखन में तालिकाएं और संरचना का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह लेखन को संगठित करता है, जिससे जानकारी की व्याख्या, विश्लेषण और सारांश करने में मदद मिलती है।
3. तार्किकता: प्रतिवेदन लेखन में तार्किकता का महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह लेखन को मान्यता और प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। तार्किकता के आधार पर प्रस्तुत किए गए तथ्य, आंकड़े, और प्रतिष्ठित स्रोतों का उपयोग किया जाता है।
4. स्पष्टता: प्रतिवेदन लेखन की एक महत्वपूर्ण विशेषता स्पष्टता होती है। लेखक को साफ़ और स्पष्ट भाषा का उपयोग करना चाहिए ताकि पाठकों को समझने में कोई कठिनाई न हो।
5. प्रोफेशनल दृष्टिकोण: प्रतिवेदन लेखन में प्रोफेशनल दृष्टिकोण का ध्यान रखना आवश्यक होता है। लेखकों को लेखन के नियमों, प्रारूपों, और संगठन की समझ होनी चाहिए। वे संगठन की अनुपालना करते हुए प्रोफेशनल और प्रतिष्ठित प्रतिवेदन बनाने की क्षमता विकसित करते हैं।
6. विश्वसनीयता: प्रतिवेदन लेखन में विश्वसनीयता की महत्वपूर्णता होती है। लेखक को प्रतिवेदन के लिए सत्यापित और प्रतिष्ठित स्रोतों का उपयोग करना चाहिए और गणनात्मक और वास्तविक आंकड़ों को सही तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।
7. संयोजन: प्रतिवेदन लेखन में अच्छा संयोजन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। संयोजन के माध्यम से विभिन्न अनुभागों, खंडों, अनुप्रयोगों और अवधारणाओं को आपस में संबंधित और सामर्थिक ढंग से जोड़ा जा सकता है।
8. सारांश: प्रतिवेदन लेखन की एक महत्वपूर्ण विशेषता सारांश है। अंतिम भाग में, एक सारांश प्रदान किया जाता है जो मुख्य बिंदुओं और नतीजों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। सारांश उपयोगकर्ताओं को मुख्य जानकारी का एक संक्षिप्त आभास प्रदान करता है।
यहां दी गई विशेषताएं प्रतिवेदन लेखन के मुख्य तत्व हैं, जो इसे प्रभावशाली, संक्षिप्त और स्पष्ट बनाती हैं।
5. माध्यिका क्या है?
माध्यिका (Median) एक सांख्यिकीय मापदंड है जो किसी डेटा सेट में मध्य वार्ता (middle value) को प्रतिष्ठान देता है। इसका माध्यमिक मान अंकित किया जाता है, जो डेटा को बढ़ाई या घटाई जाने के बिना उसके बीच में स्थानांतरित करता है।
माध्यिका की प्राप्ति के लिए डेटा सेट को आर्क क्रम में व्यवस्थित किया जाता है और फिर उसका मध्यांक (middle value) निर्धारित किया जाता है। अगर डेटा सेट में सामयिक मध्यांकों की संख्या सम (even) होती है, तो दो मध्यांकों के बीच के औसत को माध्यिका माना जाता है।
माध्यिका डेटा सेट के मध्य में स्थित होती है और इसलिए यह उचित विकल्प हो सकती है जब डेटा सेट में अतिप्रचलित आंकड़े हों या जब उच्च विस्तार वाले आंकड़े हों। माध्यिका समरूपी और उच्चतम या निम्नतम आंकड़ों से प्रभावित नहीं होती है और इसलिए यह रोबस्ट मापदंड के रूप में मान्यता प्राप्त करती है।
Comments
Post a Comment