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महिला एवं बाल विकास : बाल सुरक्षा प्रावधान और चुनौतियां : लघु उत्तरीय प्रश्न

UNIT - 1

1.विद्यालय बच्चों की सुरक्षा में किस प्रकार सहायक हैं?

विद्यालय की भूमिका: विद्यालय में सार्वभौमिक नामांकन उसे वनाये रखना एवं न्यूनतम स्तर का अधिगम 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निशुल्क आवश्यक सार्व भौमिक प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाये।

विद्यालय बच्चों की सुरक्षा में निम्नलिखित तरीकों से सहायक होते हैं:

  1. सुरक्षा मानदंड और नियमावली: विद्यालय बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष नियम और दिशा-निर्देश तैयार करते हैं। जैसे कि आगजनी, भूकंप आदि की स्थिति में सुरक्षा के उपाय।

  2. सुरक्षा कर्मियों की नियुक्ति: विद्यालयों में सुरक्षा कर्मियों की नियुक्ति की जाती है जो विद्यार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और किसी भी आपातकालीन स्थिति में सहायता प्रदान करते हैं।

  3. सीसीटीवी कैमरे: विद्यालय परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं जिससे निगरानी और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

  4. प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम: विद्यालयों में बच्चों को सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षित किया जाता है, जैसे आग से बचाव, प्राथमिक चिकित्सा, और आपातकालीन नंबरों की जानकारी।

  5. चिकित्सकीय सुविधाएँ: विद्यालयों में प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था होती है जिससे छोटी-मोटी चोटों और बीमारियों का तुरंत इलाज किया जा सके।

  6. सुरक्षित यातायात सुविधा: विद्यालय बच्चों को सुरक्षित यातायात सुविधा प्रदान करते हैं जैसे कि स्कूल बसें और वैन जिनमें सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है।

  7. सुरक्षा नीतियाँ: विद्यालयों में बच्चों के साथ किसी भी प्रकार के दुराचार या शोषण से बचाने के लिए कड़े नियम और नीतियाँ लागू की जाती हैं।

  8. मनोवैज्ञानिक सहायता: विद्यालयों में काउंसलर्स और मनोवैज्ञानिक होते हैं जो बच्चों को मानसिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान करते हैं।

इन सभी उपायों के माध्यम से विद्यालय बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान करने का प्रयास करते हैं।

2.समुदाय आधारित संगठनों की बाल सुरक्षा में क्या भूमिका है?

समुदाय आधारित संगठनों (Community-Based Organizations, CBOs) की बाल सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये संगठन स्थानीय स्तर पर काम करते हैं और विभिन्न तरीकों से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करते हैं:

  1. जागरूकता अभियान: CBOs बाल सुरक्षा के मुद्दों पर समुदाय में जागरूकता फैलाते हैं। वे बाल अधिकारों, शोषण, दुरुपयोग, और बाल मजदूरी जैसे विषयों पर जानकारी प्रदान करते हैं।

  2. शिक्षा और प्रशिक्षण: ये संगठन माता-पिता, शिक्षकों और बच्चों को बाल सुरक्षा के बारे में शिक्षित करते हैं। वे सुरक्षित व्यवहार, आत्मरक्षा के उपाय, और शोषण की पहचान करने के बारे में प्रशिक्षण देते हैं।

  3. समर्थन सेवाएँ: CBOs संकटग्रस्त बच्चों और उनके परिवारों को विभिन्न प्रकार की सहायता प्रदान करते हैं, जैसे कि काउंसलिंग, कानूनी सहायता, और पुनर्वास सेवाएँ।

  4. समुदाय की भागीदारी: CBOs बच्चों की सुरक्षा के लिए समुदाय के सदस्यों को संगठित करते हैं और उन्हें बाल सुरक्षा के प्रयासों में शामिल करते हैं। वे बाल सुरक्षा समितियों का गठन करते हैं और सामूहिक रूप से समस्याओं का समाधान करते हैं।

  5. नीति वकालत: ये संगठन सरकार और अन्य संस्थाओं के समक्ष बाल सुरक्षा से संबंधित नीतियों और कानूनों के लिए वकालत करते हैं। वे नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और बेहतर सुरक्षा उपायों के लिए जोर देते हैं।

  6. आपातकालीन प्रतिक्रिया: CBOs आपातकालीन स्थितियों, जैसे प्राकृतिक आपदाएँ या हिंसक घटनाएँ, में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं। वे राहत और पुनर्वास कार्यों में शामिल होते हैं।

  7. सुरक्षित स्थानों की स्थापना: ये संगठन बच्चों के लिए सुरक्षित स्थानों की स्थापना करते हैं, जहाँ वे खेल सकते हैं, पढ़ सकते हैं और सुरक्षित महसूस कर सकते हैं।

  8. डेटा संग्रह और अनुसंधान: CBOs बाल सुरक्षा से संबंधित डेटा एकत्र करते हैं और अनुसंधान करते हैं, जिससे नीतियों और कार्यक्रमों को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।

इन सभी उपायों के माध्यम से, समुदाय आधारित संगठन बाल सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और बच्चों के स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य के निर्माण में सहयोग करते हैं।

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बाल सुरक्षा हेतु अब तक के प्रयास
बाल सुरक्षा एतिहासिक संदर्भ में:भारतीय संस्कृती में बालकों को भविष्य के राष्ट्र निर्माता की तरह देखा जाता था व उन्हें उसी प्रकार से तैयार करने के लिये ऋषि परम्परा में संस्थागत गैर संस्थागत व समुदाय आधारित सुरक्षा प्रणाली का विकास किया गया। हम सव ने नचिकेता की कथा सुनी होगी। ऋषि उद्दालक का पुत्र नचिकेता अपने पिता के कार्य में को देखने पर प्रश्न करता है यह प्रश्न करने का अधिकार भारतीय संस्कृति की देन है। पिता के क्रोध में दिये निर्णय को स्वीकार कर यम से संवाद तक की यात्रा वाल सुलभ जिज्ञासा की यात्रा है। यम नचिकेता की जिज्ञासाओं को लगातार शान्त करना वाल सुरक्षा के वातावरण के निर्माण की भूमिका है। भारतीय संस्कृती में बाल सुरक्षा को  का चक्र सुेद्रण करने के लिये आश्रम व्यवस्था व जीवन का  क्रम सुनिश्चित करने के लिये संस्कार विधि को सामामिक रीति रीवाजों से जोडा गया आाज हम सांस्कृतिमक परंमपराओं को वर्तमान वाल सुरक्षा मानकों के आधार पर देखने का प्रयास करते है।
बाल सुरक्षा की संरचना एवं आश्रम व्यवस्था:भारतीय संसकृति में समाज व मानव जीव में कृतव्य, अधिकार एवं उत्तरदायित्व विधि के लिये आश्रम व्यवस्था का निर्माण किया आज हम इस संरचना को  वाल सुरक्षा के संदर्भ में देखते है।

  • बृहमचर्य आश्रम 0 से 25 वर्ष:वच्चे की 25 वर्ष तक पोषण शिक्षा का विास, आजीविका कौशल निर्माण की संयुक्त व राज्य के द्वारा संचालित नियत्रित गुरूकुल प्रणाली द्वारा किया जाता है। वालक के संरक्षण व उनके अधिकार की रक्षामें समाज की भूमिका को तीन आश्रम सुनिश्चित करते थे गृहस्थ आश्रम परिवार की इकाई का संचालन कर वालक को ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश हेतु संसाधन व सुरक्षा सुनिश्चित करता था। 
  • वानप्रस्थ आश्रम:समाज अपने समय का प्रयोग वालकों में संस्कार निर्माण द्वारा सुरक्षा प्रदान करने का दायित्व निभाता था।
  • संन्यास आश्रम:सन्यास आश्रम में व्यक्ति अपने ज्ञान अनुभव जीवन कौशल को गुरूकुल आश्रमों के द्वारा वापस वालक को प्रदान कर संसार में जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त कराता था।

यह त्रिस्तरीय सुरक्षा चक्र वालक को सर्वागीण विकास का वातावरण निर्माण करता था। वाल अपराघों को सुधारने के दुष्टिकोण की झलक रामचरितमानस के राम परशुराम संवाद मे दिखती है जहां राम कहते है कि प्रबुद्धजन वालकों की बातों पर ध्यान नहीं देते वरन उन्हे हंस कर टाल कर सुधारने का प्रयास करते है।
संस्कार एवं वाल सुरक्षाः भारतीय संस्कृति में 16 संस्कार है जिनमें अधिकांस संस्कार बाल सुरक्षा से जुडे हैं।

  • गर्भधारण संस्कार- प्रसवपूर्व उचित देखभाल को दर्शाता है।
  • अन्नप्रशासन संस्कार- पोषण एवं शारिरिक विकास से जोड़ता है।
  • मुण्डन संस्कार- स्वछता एवं स्वास्थ देखभाल को दर्शाता है।
  • उपनयन संस्कार- शिक्षा एवं जीवन कौशल शिक्षा सुरक्षा से संबद्ध है। 

संस्थागत एवं गैर संस्थागत सुरक्षा

  • परिवार- संयुक्त परिवार प्रणाली वालक के सर्वागीण विकास एवं सुरक्षा प्रदान करने की महत्वपूर्ण संरचना जो आज भी वाल सुरक्षा की महत्वपूर्ण इकाई है।
  • गुरूकुल-संस्थागत संरचनाका उत्कृष्ठ उदाहरण जहाॅ परिवार से दूर सुरक्षा चक्र का घेरा गुरू समुदाय व शासन द्वारा निर्मित किया जाता था। 
  • राज्य - राज्य वालसुरक्षा में परिवार गुरूकुल को संरक्षण प्रदान करने का कार्य करता था।

बाल सुरक्षा पर वैश्विक प्रयास:20 वीं सदी में प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लाखों-करोड़ों बच्चे अनाथ और विकलांग हो गए इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों की देखभाल व संरक्षण के लिए कानून बनाए गए प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ लीग ऑफ नेशंस ने 1924 में पहला अंतरराष्ट्रीय प्रयास पर बच्चों की सुरक्षा के लिए कार्य किया और यह शपथ भी की समाप्त मानव जाति के बच्चों को सबसे अच्छा करने के लिए बाध्य होगा वर्ष 1948 में मानवाधिकार की सार्वभौम घोषणा की गई जिसमें बच्चों के अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान रखे गए बाल अधिकारों की घोषणा 1959 में लीग ऑफ नेशन 1920 द्वारा बताएं जय बाल अधिकारों को दोहराया गया तथा समस्त स्वयं सेवी संस्था तथा क्षेत्रीय स्थानीय अधिकारियों को बच्चों की सुरक्षा प्रदान करने का आवाहन किया गया 1989 में छात्र संघ बाल अधिकार सम्मेलन में बाल सुरक्षा को अधिकार के रूप में विश्व में मान्यता प्राप्त हुई।

स्वतंत्रता उपरांत बाल सुरक्षा के प्रयास:स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्र के नीति निर्धारण ने बच्चों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए।

3.बच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता क्यों है।

 बाल सुरक्षा की आवश्यकता एवं प्रासंगिकता    
वर्तमान चुनौतियां एवं बाल सुरक्षा: ’’दिया एक 6 वर्षीय बालिका है वह रीतेशके पास ही रहती है, रीतेश के कोई वहन नहीं थी, वह अक्सर उदास हो जाता था रीतेश अभी कक्षा 9 वीं में पढता है। रक्षावंधन से पूर्व एक दिन शाम को उसने दिया से पूछा दिया तुम मरी वहन वनोगी। दिया ने कहा नहीं रीतेश चुप रह गया पर वह समझ नहीं पाया क्यू? आखिर उसने पूछ ही लिया दिया तुम मुझे भाई क्यूं नहीं वनाना चाहती। दिया स्कूल में एक को भाई बोला था वो स्टोर रूम में ले गये थे। आप को भाई वना उसी तो आप भी.....’’
एक कार्यकर्ता के रूप में आप इसे सुनते तो क्या करते?

  • यह तो सभी के साथ होता है।
  • परिवार को दोषी ठहरायगें।
  • दिया की गलती वतायेगें।
  • विद्यालय प्रवंधन को दोषी वतायगे।
  • दिया से वात कर उसकी सुरक्षा की चिन्ता करेंगे।
  • साक्ष्य मिलने का इंतजार करेंगे।
  • यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि सभी बच्चियों सुरक्षित हो जायें।

बच्चों के सुरक्षा पाने के अधिकार का उल्लंघन मानव अधिकारों का हनन तो करता ही है, बाल जीवन रक्षा और विकास में इतनी बडी बाधा भी है जिसे कम करके आंका जा रहा है। बच्चों के कुछ जोखिम निम्न है

  • अल्पायु
  • शारीरिक व मानसिक अस्वस्थता।
  • शैक्षणिक समस्यायें।
  • बेघर आवारगी व विस्थापन।
  • बच्चों की सुरक्षा एक आवश्यकता।

पहले हम कुछ वैश्विक परिदृश्य को समझने का प्रयास करते हैं-ः

  • 30 से अधिक राष्ट्रों में 3,000,00 से अधिक बच्चों का सशस्त्र संघर्षो में शोषण होता है। इनमें से कुछ बच्चों की आयु तो 8 वर्ष होती है। 2022 में आरम्भ रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान दो माह 2,000,00 से अधिक बच्चों का विस्थापन हुआ व लगभग 300 बच्चे मारे गये।
  • विश्व भर में 10,000,00 से अधिक बच्चे अवैध गतिविधियों मेंलिप्त होने के कारण हिरासत में रह रहे है।
  • HIV AIDS के कारण 1 करोड 30 लाख से अधिक वच्चों के अनाथ होने का खतरा है।
  • लगभग 25 करोड वचचे बाल मजदूरी में लगे है निमं से 18 करोड से अधिक बच्चे हानिकारक परिस्थितियों में कार्यरत है।
  • हर वर्ष लगभग 12,00,000 बच्चों की तस्करी होती है।
  • व्यवसायिक सेक्स व्यापार में वच्चों की संख्या 1995 के अध्ययन के अनुसार 10,00,000 वच्चे (70 लडकियां) हर साल अरवों डालर के इस कारोवार में प्रवेश करते है।
  • 15 वर्ष से कम आयु के 4,00,00,000(चार करोड) वच्चे दुरूपयोग और उपेक्षा के शिकार होते है। और उन्हें स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल की जरूरत है।
  • ये सिर्फ संख्या नहीं वरन स्वास्थ समाज में फैलता रोग है जो सम्पूर्ण वैकासिक संस्थाओं व सरंचनाओं को प्रमाणिक करेगा। किसर भी आपदा (मानव निर्मित या प्राकृतिक) या युद्ध कुछ लोगों के लिये मौका वन जाते है। संयुक्त राष्ट्र व वाल अधिकार पर कार्य करने वाली संस्थायें यूरोप के सभी देशों यूक्रेनी वच्चांे को शोषण व खरीद फरोक्त से रोकने पर कार्य कर रहे है। वच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता है क्योंकि 
  • वच्चे व्यसकों की अपेक्षा अपने वातावरण के प्रति अधिक सम्वेदनशील होते है।
  • अधिकतर समाज में वच्चों को माता पिता की सम्पति माना जाता है। 
  • वच्चों मंे समझ की कमी के कारण पथभ्रमित हो सकते है।
  • वच्चे शारीरिक रूप से दुर्वल व अक्षम होते है।
  • वच्चे भावुक मासूम तथा सम्वेदनात्मक होते है।
  • वच्चों के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है।

आपात परिस्थितियों और मानवीय संकट के समय वाल सुरक्षा की चिंता अधिक रहती है। विस्थापन, मानवीय पहुच का अभाव पारिवारिक और सामाजिक ढांचें में वदलाव विखरा पारंपरिक मूल्यों का पतन, हिंसा की संस्कृति दुर्वल प्रशासन जवावदेही का न होना और मूल सामाजिक सेवाओं की सुलभता के अभाव जैसी आपात परिस्थितियां वाल सुरक्षा के लिये गम्भाीर समस्यायें पैदा करती है।
सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चे:पूर्व विंदू में हमने जाना की वच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता क्यों है। हम यह जानने का प्रयास करते है कि किन वच्चों को सर्वाधिक सुरक्षा की आवश्यकता है वैसे तो सामाजिक आर्थिक यहां तक की भौगोलिक परिस्थतियों के कारण सभी वच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता है। पर इनमें से भी कम वच्चों की स्थिति ज्यादा सम्वेदनशाील है। या इन्हें उच्चजोखिम समूह वाले वच्चों में गिना जा सकता है।

परिस्थितियों के आधार परः

  • वेघर वच्चे (सडक किनारे रहने वाले विस्थापित या घर से निकाले गये शरर्णार्थी वच्चे)।
  • दूसरी जगह से आये वच्चे।
  • गली या घर से भागे हुये वच्चे।
  • काम, श्रम करने वाले वच्चे।
  • भीख मांगने वाले वच्चे।
  • वैश्याओं के वच्चे।
  • वैश्यावृती में लगे वच्चे।
  • प्राकृतिक आपदा से प्रभावित वच्चे।
  • जैल में वंद वच्चंे।
  • युद्ध/संघर्स से प्रभावित वच्चे।
  • HIV AIDS से प्रभावित वच्चे।
  • असाघ्य रोगों से ग्रसित वच्चें।
  • विकलांग वच्चें।

ये परिस्थितियों के आधार पर निर्मित समूह है जिन्हें सर्वाधिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
मुद्दों के आधार:बाल दुव्र्यवहार मुख्यतः सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक वर्ग समूहांे में गठित होता है। जिन्हें विभिन्न बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है। 

  • लैंगिक भेदभाव।
  • जातीय भेदभाव।
  • शारीरिक/मानसिक अपंगता।
  • महिला भ्रूण हत्या।
  • कन्या शिशु हत्या।
  • घरेलू हिंसा।
  • बाल यौन हिंसा
  • वाल विवाह 
  • वाल श्रम
  • वाल व्यापार
  • स्कूलांे में शारीरिक दण्ड
  • परीक्षा के दवाव में आत्म हत्या।
  • साइवर यौन शोषण।

चाइल्ड लाइन इंडियां फाउन्डेशन द्वारा बच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता को समस्याओं के आधार पर वर्गीकृत किया।
समस्याओं के आधार पर:

  • बाल श्रम
  • दुव्र्यवहार और हिंसा
  • यौन शोषण
  • बच्चों का अवैध व्यापार
  • लापता
  • भागे हुये
  • बाल स्वास्थय
  • बुरी लत (नशा)
  • शिक्षा संवंधी समस्यायें
  • बाल विवाह
  • कानूनी लडाई (कानून से लडते बच्चे)
  • वेघर


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बच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है:

  1. शारीरिक सुरक्षा: बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और दुर्घटनाओं, चोटों, और बीमारियों से आसानी से प्रभावित हो सकते हैं। उन्हें सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता होती है ताकि वे स्वस्थ और सुरक्षित रह सकें।

  2. मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा: बच्चों का मानसिक और भावनात्मक विकास संवेदनशील होता है। उन्हें प्यार, समर्थन, और स्थिरता की आवश्यकता होती है ताकि वे आत्मविश्वासी और खुशहाल बन सकें। किसी भी प्रकार की भावनात्मक चोट या तनाव उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

  3. शोषण और दुरुपयोग से बचाव: बच्चे अक्सर शोषण, दुरुपयोग, और उपेक्षा के शिकार हो सकते हैं। इन्हें सुरक्षित वातावरण में रखने से उन्हें शारीरिक, यौन, और भावनात्मक शोषण से बचाया जा सकता है।

  4. शिक्षा और विकास: सुरक्षित वातावरण में बच्चे बेहतर तरीके से सीख सकते हैं और अपने कौशल और क्षमताओं का विकास कर सकते हैं। सुरक्षा के बिना, बच्चे अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँचने में असमर्थ हो सकते हैं।

  5. मूल अधिकारों की रक्षा: बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। उन्हें जीने, शिक्षा प्राप्त करने, खेलने, और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है। सुरक्षा के उपाय इन अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं।

  6. सामाजिक विकास: बच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता होती है ताकि वे सामाजिक रूप से स्वस्थ और संतुलित व्यक्तित्व के रूप में विकसित हो सकें। सुरक्षा उन्हें सामाजिक नियमों और मूल्यों को समझने और अपनाने में मदद करती है।

  7. भविष्य की पीढ़ी की सुरक्षा: बच्चे भविष्य की पीढ़ी हैं। उनकी सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने से एक स्वस्थ, सुरक्षित और समृद्ध समाज का निर्माण होता है।

इन सभी कारणों से, बच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता होती है ताकि वे स्वस्थ, खुशहाल, और सुरक्षित वातावरण में बड़े हो सकें और अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें।



4.चाइल्ड लाइन फाउन्डेशन के अनुसार बच्चों को समस्याओं के आधार पर कितने वर्ग है।

चाइल्ड लाइन इंडियां फाउन्डेशन द्वारा बच्चों को सुरक्षा की आवश्यकता को समस्याओं के आधार पर वर्गीकृत किया।
समस्याओं के आधार पर:

  • बाल श्रम
  • दुव्र्यवहार और हिंसा
  • यौन शोषण
  • बच्चों का अवैध व्यापार
  • लापता
  • भागे हुये
  • बाल स्वास्थय
  • बुरी लत (नशा)
  • शिक्षा संवंधी समस्यायें
  • बाल विवाह
  • कानूनी लडाई (कानून से लडते बच्चे)
  • वेघर

1. बाल श्रम (Child Labor): बच्चों को कम उम्र में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनकी शिक्षा और विकास में बाधा आती है। ये बच्चे अक्सर खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं और उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता।

2. दुर्व्यवहार और हिंसा (Abuse and Violence): बच्चों को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इसमें घर, स्कूल या किसी अन्य जगह पर हिंसा और प्रताड़ना शामिल है।

3. यौन शोषण (Sexual Exploitation): बच्चों का यौन शोषण किया जाता है, जिसमें उन्हें पोर्नोग्राफी, वेश्यावृत्ति या अन्य यौन गतिविधियों में शामिल किया जाता है। यह उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है।

4. बच्चों का अवैध व्यापार (Child Trafficking): बच्चों को अवैध रूप से बेचने और खरीदने की प्रक्रिया, जिसमें उन्हें विभिन्न प्रकार के शोषण के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे कि बाल श्रम, यौन शोषण आदि।

5. लापता (Missing Children): कुछ बच्चे लापता हो जाते हैं और उन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है। वे अलग-अलग कारणों से गायब हो सकते हैं, जैसे कि अपहरण, घर से भाग जाना, आदि।

6. भागे हुए (Runaway Children): बच्चे घर, स्कूल या किसी अन्य जगह से भाग जाते हैं, जो उनके लिए खतरनाक हो सकता है। इन्हें सुरक्षित जगह पर लाना और इनकी समस्याओं का समाधान करना जरूरी होता है।

7. बाल स्वास्थ्य (Child Health): बच्चों को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि कुपोषण, बीमारियां, और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी। इनका समय पर उपचार और देखभाल जरूरी है।

8. बुरी लत (नशा) (Substance Abuse): कुछ बच्चे नशे की लत का शिकार हो जाते हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इन्हें पुनर्वास और परामर्श की आवश्यकता होती है।

9. शिक्षा संबंधी समस्याएं (Educational Problems): बच्चों को शिक्षा में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि स्कूल में भेदभाव, खराब पढ़ाई के साधन, और शिक्षा की कमी। ये समस्याएं उनके भविष्य को प्रभावित करती हैं।

10. बाल विवाह (Child Marriage): कई बच्चे बाल विवाह का शिकार होते हैं, जिससे उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत विकास में बाधा आती है। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है।

11. कानूनी लड़ाई (कानून से लड़ते बच्चे) (Children in Conflict with Law): कुछ बच्चे अपराधों में शामिल हो जाते हैं और उन्हें कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हें सुधार और पुनर्वास की आवश्यकता होती है।

12. बेघर (Homeless Children): कुछ बच्चे घर से बेघर हो जाते हैं और सड़क पर रहने के लिए मजबूर होते हैं। इन्हें सुरक्षित आश्रय, भोजन और शिक्षा की आवश्यकता होती है।

चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन इन समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न सेवाएं और कार्यक्रम चलाती है ताकि बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ जीवन प्रदान किया जा सके।


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UNIT - 2

1.   बाल प्रवसन क्या है।

 प्रवसन क्या है

किसी व्यक्ति द्वारा अपने नियमित स्थल को बदल जाना प्रवसन कहलाता है जब कोई परिवार या व्यक्ति आजीविका के उद्देश्य से अपने निवास को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाता है और भविष्य में वापस आता है तो उसे प्रवसन कहते हैं।
बाल प्रवसन
जब बच्चे अपने माता.पिता के साथ स्वयं पड़ोसियों के साथ अन्य स्थानों पर जाते हैं तो उसे बाल प्रवशन कहा जाता है अनेक मामलों में बच्चों से बाल श्रम के रूप में बलपूर्वक ऐसा कराया जाता है।

ऐसी प्रवचन को निम्नानुसार श्रेणीबंद्ध किया जा सकता है रू

  • मौसम आधारित या अस्थाई या स्थाई या लंबी अवधि के लिए
  • स्वैच्छिक प्रवसन या बलात प्रवसन
  • अंतरराष्ट्रीय प्रवसन या आंतरिक प्रवसन

बाल प्रबशन के दुष्प्रभाव

  • बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं

जो बच्चे प्रवास पर जाते हैं उनमें से अधिकांश सदस्य घरेलू कार्य शहरी अनौपचारिक कार्य या जोखिम वाले कार्यों में नियोजित किया जाता है।
प्रमोशन प्रक्रिया के दौरान लड़कियों के यौन उत्पीड़न की संभावना बहुत ज्यादा होती है।
माता पिता की व्यस्त दिनचर्या के कारण बच्चों में ड्रग्स अल्कोहल धूम्रपान खनिज तथा जुआ खेलने की लत लग जाती है बच्चे अवैध खरीद.फरोख्त के शिकार हो सकते हैं।
गंतव्य वाले स्थान पर अनेक वयस्क बच्चे साल में कार्य करते हैं जिससे उनके उत्पीड़न की संभावना बढ़ जाती है ।

  • बच्चों को पक्षपात अस्थिरता बाधाओं का निष्कासन का सामना करना पड़ता है।
  • कार्य स्थल पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव होता है।

बच्चों से संबंधित भेदभाव उत्पीड़न हिंसा के विभिन्न मुद्दों पर हम बाल संरक्षण इकाई के अंतर्गत चर्चा करेंगे। 


बाल प्रवसन (Child Migration) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बच्चे विभिन्न कारणों से अपने स्थायी निवास स्थान से स्थानांतरित होते हैं। यह स्थानांतरण किसी देश के भीतर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है। बाल प्रवसन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

  1. शैक्षिक अवसर: बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चे दूसरे स्थानों पर जाते हैं।
  2. आर्थिक कारण: परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बच्चे काम की तलाश में प्रवास करते हैं।
  3. परिवारिक पुनर्मिलन: परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहने के लिए बच्चे प्रवास करते हैं।
  4. सुरक्षा और शरणार्थी संकट: युद्ध, संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं या उत्पीड़न के कारण बच्चे सुरक्षित स्थानों की ओर प्रवास करते हैं।
  5. बाल श्रम और तस्करी: कुछ मामलों में बच्चे अवैध रूप से तस्करी या श्रम के लिए मजबूर होकर प्रवास करते हैं।

बाल प्रवसन बच्चों के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। उनके सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।


2.    सतत विकास लक्ष्य से आप क्या समझते हैं।


 बाल अधिकारों का विश्लेषण एवं सतत् विकास लक्ष्य (SDG 2030)
सारिका कक्षा 5 में पढ़ती है उसकी मां घरों में झाड़ू पोछा का काम करती है कभी.कभी सारे का भी मां के साथ जाती है काम में मदद भी कर देती है सारिका की मां ने सारिका को दाखिला एक अच्छे स्कूल में करा दिया है सारिका की माने कोविड  के दौर में सारिका की फीस जमा नहीं कर पाई स्कूल ने अब सारिका की अगली कक्षा कि मार्कशीट देने से मना कर दिया है अब सारिका क्या करें
आप सभी लोग इसके बारे में बताएं बाल अधिकार को सरल व स्पष्ट रूप से हम समझ सकते हैं हम अपने आसपास देखें आप क्या पाती हैं
क्या सभी बच्चे स्वस्थ प्रसन्न व शिक्षा ग्रहण कर रही है
क्या सभी बच्चे का उत्पीड़न से सुरक्षित है
ईट भट्टे पर मिलने वाले बच्चे वह हमारे घर के बच्चे में क्या अंतर है
कुछ बच्चे गली में कचरा क्यों बनते हैं
ऐसे अनगिनत प्रश्न हमारे मन में चलती रहती हैं 18 वर्ष से कम आयु के मनुष्य को अपने जीवन के विकास के लिए जिन चीजों की आवश्यकता है वह उनके अधिकार होंगे हमने पिछली गाय में जाना कि बच्चों के अधिकारों पर विश्व के सभी देशों ने अपनी प्रतिभा यह जाहिर की व उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए वैधानिक प्रावधान भी किए आज हम इसी के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे
बाल अधिकार कौन-कौन से हैं।
बाल अधिकारों की पहली लिखित दस्तावेज जिसे वैश्विक रूप से स्वीकार किया गया वह संयुक्त राष्ट्र संघ बाल अधिकारों सम्मेलन यूएनसीआरसी है जिसे भारत द्वारा 1992 में अंगीकृत किया गया यूएनसीआरसी ने 54 अनुच्छेदों का उल्लेख किया है जिनमें बाल अधिकारों की निर्देशात्मक सूची का उल्लेख है इन अधिकारों को निम्न चार भागो के अनुसार साबित किया जा सकता है।
जीवित रहने या जीवन का अधिकार इस अधिकार के अंतर्गत बच्चे को जन्म लेने जन्म के समय पंजीकृत होने नाम प्रदान किए जाने एक देश का नागरिक होने माता और पिता का प्यार देखभाल एवं संरक्षण भाई.बहन पानी न्यूनतम स्तर का भोजन आश्रय एवं वस्त्र पानी जैसे अधिकारों का वर्णन है।
जन्म पंजीकरण और पहचान का अधिकार
जन्म पंजीकरण में मुख्य बाधा यह है कि समूचे विश्व में इसे बुनियादी अधिकार नहीं माना जाता है और इसके परिणाम स्वरूप हर स्तर पर इसे कम प्राथमिकता दी जाती है।
जन्म पंजीयन का अर्थ शासन के किसी भी शासन के स्तर पर बच्चे की जन्म को आधिकारिक स्तर पर दर्ज करना है यह बच्चे के अस्तित्व का स्थाई व आधिकारिक रिकॉर्ड है जन्म पंजीकरण बच्चे के पहचान और कानूनी व्यक्तित्व पाने के अधिकार के साथ.साथ अन्य अधिकारों को संरक्षण देने के लिए भी आवश्यक है जन्म का यह दस्तावेज उन्हें तस्करी व अपहरण से बचाने में मदद करता है और अक्सर स्कूल में प्रवेश स्वास्थ्य सेवा बाल विवाह यौन शोषण सशस्त्र सेना में भर्ती और आपराधिक न्याय से जो में संरक्षण से वंचित ना किए जाने का कानूनी अखबार बनाता है।
जन्म पंजीकरण में शामिल जानकारी

  • जन्म का स्थान।
  • बच्चे का नाम एवं लिंग ।
  • माता-पिता दोनों का नाम पता व राष्ट्रीयता ।

जन्म पंजीकरण में बाधा 
1.पंजीकरण प्रशासनिक प्रशासनिक प्रणालियों का सीमित प्रसार ग्रामीण।
2.क्षेत्रपहचान के दस्तावेज ।
3.जातीय धार्मिक या शरणार्थियों के साथ भेदभाव।
4.माता पिता का महत्व बताना हो ना ।
5.सरकारी भाषा का प्रयोग करना।

पहचान का अधिकार :अधिकांश व्यक्ति के कम से कम दो नाम होते हैं जिनमें से एक माता पिता की पहचान बताता है।
पोषण का अधिकार :  जीवन के अधिकार से जुड़ा है उसमें बच्चे को न्यूनतम आवश्यक कैलोरी युक्त भोजन मां का दूध पाने की खाद्य सुरक्षा अधिकारी से जोड़ा गया है।
समुचित जीवन स्तर प्राप्त करने का अधिकार
इसमें आवास व वस्त्र स्वच्छ वातावरण व स्वस्थ सुविधा को प्राप्त करने के अधिकार शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त जीवन के अधिकार के अंतर्गत लिंग आधारित गर्भपात अथवा शिशु हत्या अथवा भ्रूण हत्या को रोका जाना समय बाद टीकाकरण मां का दूध पीने अच्छा स्वास्थ्य पाने तथा स्वच्छ वातावरण में रहने का अधिकार भी शामिल है।
विकास का अधिकार
इस अधिकार में पोस्टिक भोजन आंगनवाड़ी प्ले स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उचित देखभाल व्यवसायिक शिक्षा खेल व मनोरंजन अवकाश मित्र सामाजिकता के लिए शुभ अवसर इत्यादि से संबंधित अधिकार शामिल हैं।
सुरक्षा का अधिकार
सुरक्षा के अधिकार के अंतर्गत बच्चों को सुरक्षित रखने तथा उन्हें घर स्कूल समुदाय या किसी भी स्थल पर हिंसा उत्पीड़न दुर्व्यवहार उपेक्षित व किसी अन्य प्रकार के ऐसे बुरे बर्ताव से बचाए रखने का अधिकार प्रदान करता है जिससे उन्हें शारीरिक मानसिक भावनात्मक या अन्य किसी प्रकार की क्षति पहुंच सकती है।
इसमें बाल श्रम बाल विवाह बाल व्यापार लावारिस बनाना बिगर नशे की लत लगाना लैंगिक दुर्व्यवहार भीख मंगवाना करना इत्यादि शामिल है।
सहभागिता का अधिकार
सहभागिता के अधिकार के अंतर्गत बच्चों को उन निजी एवं तथा मामला नायक प्रक्रिया समिति में बोलने अभिव्यक्ति तथा सहभागिता करने का अधिकार प्रदान किया जाता है यह अधिकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके जीवन को प्रभावित करते हैं तथा वयस्कों का कर्तव्य है कि उनकी बात सुने।
सभी अधिकार एक दूसरे पर निर्भर और अविवाहित हैं फिर भी उनकी प्रकृति के आधार पर इन्हें दो भागों में विभाजित किया गया है।
त्वरित अधिकार नागरिक व राजनीतिक अधिकार
इसमें भेदभाव दंड अपराधिक मामलों में पारदर्शी एवं सत्यता पूर्ण सुनवाई का अधिकार बच्चों के लिए अलग न्याय व्यवस्था जीवन का अधिकार राष्ट्रीयता का अधिकार परिवार के साथ पुनर्मिलन का अधिकार आदि विशेष श्रेणी में के अंतर्गत अधिकांश सुरक्षा अधिकार आते हैं इस वजह से इन अधिकारों के लिए तत्काल दिए जाने एवं सचिव की मांग की जाती है।
प्रगतिशील अधिकार आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक
इसमें स्वास्थ्य शिक्षा और भी अधिकार हैं जिन्हें प्रथम वर्ग में शामिल नहीं किया गया है इन्हें सीआरसी के अंतर्गत अनुच्छेद 4 में मान्यता दी गई है जो कहता है आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के संदर्भ मैं जहां जरूरी हो सरकार के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सहकारिता के ढांचे के दायरे में उपलब्ध संसाधनों को लोगों तक पहुंचाने के लिए उचित कदम उठाएंगे।
भारतीय संविधान के अंतर्गत अधिकार

  • भारतीय संविधान में सभी बच्चों के लिए कुछ अधिकार निश्चित किए हैं इसे विशेष रूप से उनके लिए संविधान में शामिल किया गया है वे अधिकार इस प्रकार हैं।
  • 6 से 14 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार।
  • 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को किसी भी जोखिम वाले कार्य में सुरक्षा से अधिकार अनुच्छेद 24।
  • आर्थिक जरूरतों के कारण जबरन ऐसे कामों में भेजना जो उनकी आयु क्षमता के उपयुक्त नहीं है उससे सुरक्षा का अधिकार अनुच्छेद 39 ई।
  • समान अवसर व सुविधा का अधिकार है जो उन्हें स्वतंत्रता एवं प्रतिष्ठा पूर्ण माहौल प्रदान करें और उनका स्वास्थ्य रूप से विकास हो सके साथ ही नेतृत्व एवं भौतिक कारणों से होने वाले शोषण से सुरक्षा का अधिकार अनुच्छेद 39।
  • इसके साथ ही उन्हें भारत के वयस्क पुरुष एवं महिला के बराबर समान अधिकार के भी अधिकार प्राप्त हैं।
  • समानता का अधिकार अनुच्छेद 14।
  • भेदभाव के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 15।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून की सम्यक प्रक्रिया का अधिकार अनुच्छेद 21।
  • जबरन बंधुआ मजदूरी में रखने के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार अनुच्छेद 23।
  • सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से समाज के कमजोर तबकों के सुरक्षा का अधिकार अनुच्छेद 46।

बाल अधिकार पर राज्यों के लिए निर्देश

  • महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाएं अनुच्छेद 15 ए3।
  • अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करें अनुच्छेद 29।
  • समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षणिक हितों को बढ़ावा दें।
  • आम लोगों के जीवन स्तर और पोषाहार स्थिति में सुधार लाने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार हेतु व्यवस्था करें अनुच्छेद 47।

बाल अधिकार एवं सतत विकास लक्ष्य

  • सतत विकास के लक्ष्य बाल अधिकारों के महत्व को समझे बिना हासिल नहीं किए जा सकते।
  • बच्चों के अधिकारों पर सतत विकास के एजेंडे का व्यापक प्रभाव है इसलिए यह जरूरी है कि सतत विकास के लक्ष्य को पाने के लिए बच्चों को प्राथमिकता दी जाए।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2015-17 सतत विकास लक्ष्य तय किए जिन्हें 2030 तक हासिल किया जाना है बाल अधिकार की दृष्टि से महत्वपूर्ण लक्षण निम्न है।

सतत विकास लक्ष्य 0 भुखमरी
2030 सतत विकास एजेंडा के लक्ष्य दो का उद्देश्य अगले 15 वर्ष में भूख और हर तरह के कुपोषण को मिटाना है 28.1 करोड़ अल्प पोषित लोगों में भारत की 40%आबादी शामिल है।
उद्देश्य

  • 2030 तक भुखमरी मिटाना और सभी लोगों को विशेषकर गरीब और शिष्यों सहित लाचारी में जीते लोगों को पूरे वर्ष पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना।
  • 2030 तक कुपोषण के हर रूप को मिटाना।

सतत विकास लक्ष्य उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली
उद्देश्य

  • 2030 तक दुनिया में मातृ मृत्यु दर घटाकर प्रति एक लाख जीवित शिशु प्रसव पर 70 से कम करना
  • सतत विकास लक्ष्य चार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
  • भारत में प्राइमरी शिक्षा सर्व सुलभ कराने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है 2013.14 तक लड़के लड़कियों के लिए प्राइमरी शिक्षा में भर्ती दर 88% थी

उद्देश्य

  • 2030 तक सुनिश्चित करना कि सभी लड़कियां और लड़के मुफ्त बराबर उत्तम प्राइमरी और माध्यमिक शिक्षा पूरी कर ले।

सतत विकास लक्ष्य 5 लैंगिक समानता
उद्देश्य

  • महिलाओं और लड़कियों के साथ हर जगह हर प्रकार का भेदभाव मिटाना


3.    बाल अधिकारों से आप क्या समझते हैं।


बाल अधिकार क्या है
18 वर्ष से कम आयु वाले समस्त मनुष्यों के लिए मूलभूत स्वायत्तता तथा जन्मजात अधिकार बाल अधिकार हैं।
यह अधिकार आयु भाषा कुल रंग जाति धर्म लिंग संप्रदाय शारीरिक क्षमता या अन्य स्तर के आधार पर भेदभाव किए बिना समस्त बच्चों पर समान रूप से लागू है इसका आधारभूत तत्व समान अवसर प्रदान करना है इसमें लड़कियां भी शामिल हैं प्रत्येक बच्चे के अधिकार निश्चित हैं जो कि उसकी पात्रता निर्धारित करती हैं तथा उन्हें इन अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।
क्या बाल अधिकार महत्वपूर्ण है
बच्चे मासूम विश्वसनीयता तथा आशाओं से परिपूर्ण होते हैं उनका बचपन कुशवाहा तथा प्यारा होना चाहिए उनके द्वारा सीखते हुए अपने अनुभवों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर व्यस्त होने की ओर बढ़ना चाहिए लेकिन आने के बच्चों के लिए बचपन की हकीकत बिल्कुल भी ना होती है बच्चे अपनी कोमलता अपरिपक्वता तथा निर्भरता के कारण अनेक अधिकारों से वंचित रह जाते हैं इसलिए बच्चों पर विशेष ध्यान देने उन्हें सुरक्षित रखने तथा उनके साथ विशेष रूप से साथ कल्याणकारी बर्ताव करने की आवश्यकता है।
भारत में बच्चे प्रताड़ना तथा उत्पीड़न खेलते हैं बच्चे भूख व आवास ही नेता हानिकारक परिस्थितियों में कार्य उच्च शिक्षा के सीमित अवसर लैंगिक भेदभाव से भी गुजरते हैं इन सब से बच्चों को मुक्त रखने के लिए अधिकार महत्वपूर्ण है अधिकार उन्हें उल्लंघन पर संवैधानिक प्रावधान उपलब्ध कराती हैं।
बाल अधिकार एवं वैश्विक पहल
बाल अधिकार संबंधी जिनेवा घोषणा 1924
1.बच्चों के अधिकारों के लिए प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात राष्ट्र संघ ने पहली बार कहा कि मूल वंश राष्ट्रीयता अथवा मध्य अंतर चाहे कुछ भी हो फिर भी बच्चों को निम्नलिखित उपलब्ध होना चाहिए।
2.बच्चे को उसके सामान्य विकास के लिए भौतिक और आध्यात्मिक रूप से अपेक्षित साधन उपलब्ध कराना चाहिए।
3.बच्चे को भोजन उपचार एवं आश्रय की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
4.बच्चे को सबसे पहले सहायता मिलनी चाहिए। 
5.बच्चे की प्रतिभा का साथियों की सेवा के लिए उपयोग हो।
मानव अधिकार संबंधी सार्वभौमिक घोषणा 1948
1.इस घोषणा के अनुच्छेद 25 2 एवं 26 में बच्चों के अधिकार का उल्लेख किया गया है अनुच्छेद 26 में कहा गया।
2.प्रत्येक बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है शिक्षा कम से कम प्रारंभिक और मौलिक अवस्था में निशुल्क होगी एवं अनिवार्य होगी।
3.शिक्षा को मानव व्यक्तित्व के पूर्ण विकास और मौलिक स्वतंत्रता ओं के लिए ग्रहण किया जाएगा।
4.अभिभावकों को शिक्षा की किस्में चुन्नी का पूर्ण अधिकार है जो अपने बच्चे को प्रदान करेंगे।
बाल अधिकारों संबंधी घोषणा 1959
उसकी प्रस्तावना में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति मानव अधिकार सामाजिक प्रगति के लिए बहुत आवश्यक है उन्हें किसी भी कीमत पर मिलना चाहिए सिद्धांत दो में बच्चे को विशेष संरक्षण का हकदार माना है ताकि वह स्वतंत्रता और धर्मा के साथ अपना विकास करने में सक्षम हो सकें सिद्धांत सामाजिक सुरक्षा के लाभ और पर्याप्त पोषण सिद्धांत 5 विकलांग बच्चों के संरक्षण की बात करता है सिद्धांत 6 विधवा अनाथ बच्चों के अधिकारी बात करता है सिद्धांत 9 बाल दुर्व्यवहार और इसका विरोध करता है।
शिक्षा में भेदभाव के विरुद्ध सम्मेलन 1960 यह सम्मेलन निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का समर्थन करता है और सरकारों की नीति विकसित करने के लिए कहता है।
बच्चों के अधिकारों से संबंधित सम्मेलन 1989
संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग द्वारा बाल अधिकार का मसौदा तैयार किया गया इसे संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा 20 नवंबर 1989 को अंगीकृत किया गया और 12 दिसंबर 1992 को भारत द्वारा समर्थित किया गया दस्तावेज बच्चों की शिक्षा और बेहतरी के लिए वैश्विक वैधानिक मानदंडों का एक समुच्चय है यह सिद्धांत से निर्देशित होता है कि संसाधनों के आवंटन में बच्चों की सबसे जरूरी आवश्यकता को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाए बाल अधिकार सम्मेलन बच्चों को उनके बुनियादी अधिकार देती है जो बच्चों को पूर्ण क्षमताओं को विकसित करने योग्य बनाती है यह नागरिक राजनैतिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों 4 भाग में बांटा है।
1.जीने का अधिकार
2.सुरक्षा का अधिकार
3.विकास का अधिकार 
4.सहभागिता का अधिकार
आगे की इकाई में हम इन अधिकारों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे
बच्चों संबंधी विश्व सम्मेलन 1990
यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र में 29 सितंबर 1990 को हुआ। जिसमें बच्चों की उत्तरजीविता संरक्षण और विकास संबंधी घोषणा को और 1990 के दशक में क्रियान्वयन के लिए कार्य योजना को स्वीकृत किया गया इस घोषणा में कहा गया है कि राजनीतिक इच्छा राष्ट्रीय कार्यवाही और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बच्चों की अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है इस घोषणा को कार्यान्वित करने के लिए आ रही हो जना बच्चों के कल्याण करने के लिए स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा और साक्षरता मातृ स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में विशेष कार्रवाई होती है।ण्
बाल श्रम के सर्वाधिक खराब रूपों के उन्मूलन के लिए निषेध और तत्काल कार्यवाही संबंधी सम्मेलन 1999
27 जून 1999 को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन सम्मेलन को अंगीकार किया गया इसके अनुच्छेद 3 में बालकों के लिए बच्चों की बिक्री और अवैध व्यापार दासता और कृषि दासता और जबरन वेश्यावृत्ति के लिए प्रस्तुत करना अनुचित क्रियाकलापों विशेषकर मादक द्रव्यों का उत्पादन एवं व्यापार एवं दुर्व्यवहार के लिए बच्चों का प्रयोग की समाप्ति बाल श्रम उन्मूलन के लिए शिक्षा के महत्व को भी स्वीकार करता है
अपंगता से ग्रसित व्यक्तियों के अधिकार से संबंधित 2006 

  • इस सम्मेलन का उद्देश्य एवं मानसिक से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए मानव अधिकारों को सुनिश्चित करना है।

जोड़ी बनाओ
जिनेवा सम्मेलन                                                                          1989
कहां से ग्रसित व्यक्तियों का अधिकार सम्मेलन                                   1924
बाल अधिकारों संबंधी घोषणा                                                           2006
अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार सम्मेलन                                                    1959




बाल अधिकार (Children's Rights) उन अधिकारों का समूह हैं जो सभी बच्चों को जन्म से ही प्राप्त होते हैं। ये अधिकार बच्चों के विकास, संरक्षण, और उनकी भलाई सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। बाल अधिकारों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन (UN Convention on the Rights of the Child, UNCRC) द्वारा मान्यता प्राप्त है। यहां कुछ मुख्य बाल अधिकारों का वर्णन है:

  1. जीवन का अधिकार: हर बच्चे को जीने का अधिकार है।
  2. विकास का अधिकार: हर बच्चे को शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक रूप से विकसित होने का अधिकार है।
  3. संरक्षण का अधिकार: हर बच्चे को सभी प्रकार के शोषण, उपेक्षा, और हिंसा से संरक्षित किया जाना चाहिए।
  4. भागीदारी का अधिकार: हर बच्चे को अपनी राय व्यक्त करने, विचार विमर्श में भाग लेने और निर्णय लेने में अपनी आवाज उठाने का अधिकार है।

विशेष अधिकारों की सूची निम्नलिखित है:

  1. जीवन, अस्तित्व और विकास का अधिकार: बच्चों को एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन का अधिकार है।
  2. नाम और राष्ट्रीयता का अधिकार: हर बच्चे का जन्म पंजीकरण होना चाहिए और उसे एक नाम और राष्ट्रीयता का अधिकार होना चाहिए।
  3. पारिवारिक वातावरण का अधिकार: बच्चों को एक सुरक्षित और देखभाल करने वाला पारिवारिक वातावरण मिलना चाहिए।
  4. स्वास्थ्य सेवा का अधिकार: बच्चों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए।
  5. शिक्षा का अधिकार: हर बच्चे को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
  6. खेल और मनोरंजन का अधिकार: बच्चों को खेलने, आराम करने और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।
  7. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार: बच्चों को अपनी राय और विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार है।
  8. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: बच्चों को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने का अधिकार है।
  9. शोषण से सुरक्षा का अधिकार: बच्चों को बाल श्रम, तस्करी, यौन शोषण और अन्य प्रकार के शोषण से सुरक्षा मिलनी चाहिए।
  10. विशेष देखभाल और सहायता का अधिकार: विकलांग बच्चों को विशेष देखभाल और सहायता मिलनी चाहिए।
  11. न्याय तक पहुंच का अधिकार: बच्चों को न्याय प्रणाली में उचित प्रतिनिधित्व और सुरक्षा मिलनी चाहिए।

बाल अधिकारों का उद्देश्य बच्चों को एक सुरक्षित, स्वस्थ, और समावेशी वातावरण प्रदान करना है, जहां वे अपने पूर्ण सामर्थ्य को प्राप्त कर सकें और एक सम्मानजनक जीवन जी सकें।


4.    सुरक्षा के अधिकार पर टिप्पणी लिखें।

बाल सुरक्षा प्रावधान और चुनौतियां बाल सुरक्षा के अधिकार के महत्वपूर्ण पहलू हैं, जो बच्चों को हर प्रकार के शोषण, उपेक्षा और हिंसा से सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक हैं। भारत में, बाल सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए कई कानूनी प्रावधान और योजनाएं बनाई गई हैं। यहां बाल सुरक्षा प्रावधान और चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है:

बाल सुरक्षा प्रावधान

  1. जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015: यह कानून बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान करता है। यह बच्चों के लिए सुधार गृहों और विशेष अदालतों की व्यवस्था करता है।

  2. पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेज) एक्ट, 2012: यह कानून बच्चों के खिलाफ यौन शोषण और उत्पीड़न को रोकने और उन पर कठोर सजा देने के लिए लागू किया गया है।

  3. बाल श्रम (प्रतिबंध और विनियमन) अधिनियम, 1986: यह कानून बच्चों को खतरनाक कामों से दूर रखने और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।

  4. आरटीई (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम, 2009: यह कानून 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।

  5. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR): यह आयोग बाल अधिकारों की निगरानी और उनके संरक्षण के लिए कार्य करता है।

चुनौतियां

  1. गरीबी और आर्थिक असमानता: गरीबी के कारण बच्चे अक्सर बाल श्रम, तस्करी और अन्य शोषण के शिकार हो जाते हैं। आर्थिक असमानता बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखती है।

  2. शिक्षा और जागरूकता की कमी: कई अभिभावक और समुदायों में बाल अधिकारों और सुरक्षा के प्रावधानों के बारे में जागरूकता की कमी होती है, जिससे बच्चों का शोषण होता है।

  3. सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: बाल विवाह, बाल श्रम और लैंगिक भेदभाव जैसी सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण बच्चों की सुरक्षा को खतरा होता है।

  4. अपर्याप्त कानून प्रवर्तन: कानून तो बने हुए हैं, लेकिन उनके कार्यान्वयन में कमजोरियां और भ्रष्टाचार के कारण बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो पाती है।

  5. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: बाल शोषण से प्रभावित बच्चों को पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पाती हैं, जिससे उनका पुनर्वास कठिन हो जाता है।

बाल सुरक्षा के अधिकार पर टिप्पणी

बाल सुरक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि बच्चे सभी प्रकार के शोषण, हिंसा और उपेक्षा से सुरक्षित रहें और उन्हें एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण मिले। इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए न केवल प्रभावी कानूनों और नीतियों की आवश्यकता है, बल्कि समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता भी बढ़ानी होगी।

बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, समुदायों और परिवारों को मिलकर कार्य करना होगा। बच्चों के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना, कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन, और पीड़ित बच्चों के लिए पुनर्वास सेवाओं का प्रावधान करना आवश्यक है। केवल तभी हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां हर बच्चा सुरक्षित, स्वस्थ और सम्मानित जीवन जी सके।


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UNIT - 3

1.बाल संरक्षण क्या है।

केस स्टडी
यह कहानी मोनिका परिवर्तित नाम की है मोनिका अपनी मां के साथ शादी में मैरिज गार्डन में थी मोनिका अभी 5 वर्ष की थी उसे आइसक्रीम खाना पसंद थी पर उसे भीड़ में मिल नहीं पा रही थी एक अंकल ने उसे आइसक्रीम दिलवा दी उसने खाली अंकल ने फिर से एक आइसक्रीम दिला दी वह अपनी मम्मी के पास गई पर उसे और आइसक्रीम खानी थी वह फिर से स्टॉल पर गई वही अंकल ने उसे एक और आइसक्रीम दिलाई वह उससे पूछा चॉकलेट खाओगी मोनिका ने हां कर दी और अंकल उसे चॉकलेट दिलाने गार्डन से बाहर दुकान की ओर ले जाए निर्माण का कहीं नहीं मिली उसे सही जगह तलाशा गया दूसरे दिन किसी ने पुलिस सूचना दी कि एक बच्ची की लाश मिली है पुलिस ने जांच में पाया कि बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या की गई थी।

आप क्या सोचते हैं
1. मोनिका के साथ ऐसा क्यों हुआघ्
2. मोनिका के माता.पिता की क्या गलती थीघ्
3. मैरिज गार्डन वाली की भूमिका सही थी।
4. क्या इस घटना को घटने से रोका जा सकता था।
छोटी बच्चियों के साथ ऐसी ऐसे घटनाक्रम क्या समाज की सोच में आ रहे बदलाव की सूचक है।

बाल संरक्षण क्या है :बाल संरक्षण शब्द का उपयोग विभिन्न संगठन विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न रूपों में करते हैं यहां इसका सही अर्थ होगा कि हिंसा दुरुपयोग और शोषण से संरक्षण।
सीधे शब्दों में कहें तो बाल संरक्षण का अर्थ प्रत्येक बच्चे के इस अधिकार को संरक्षण देना है कि उसे इसी प्रकार की क्षति न पहुंचाई जाए इससे अन्य अधिकारों को भी बल मिलता है इससे सुनिश्चित होता है कि बच्चों को वह सब कुछ प्राप्त हो जिसकी उन्हें जीवित रहने विकसित होने और फलने फूलने के लिए आवश्यकता है।
बाल संरक्षण के दायरे में कई महत्वपूर्ण विषय और आवश्यक मुद्दे शामिल हैं यहां तक कि प्रौद्योगिक प्रगति का संबंध भी संरक्षण से है जैसे बच्चों के असली चित्रण की बढ़ती प्रवृत्ति में देखा जा सकता है।
जोखिम क्या है : बच्चों के संरक्षण पाने के अधिकार का उल्लंघन मानव अधिकारों का हनन तो करता ही है बाल जीवन रक्षा और विकास में इतनी बड़ी बाधा भी है जिसे बहुत कम करके आता जाता है और सत्य से कम बताया जाता है इंसान शोषण दुरुपयोग और उपेक्षा के शिकार बच्चों के लिए मौजूद कुछ जोखिम इस प्रकार हैं।
1    अल्प आयु
2    शारीरिकऔर मानसिक अस्वस्थता
3    शैक्षणिक समस्याएं
4    बेघर होना आवारगी और विस्थापन
इसके विपरीत संरक्षण की सफल कार्यवाही से बच्चों के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ आत्मविश्वास ही और स्वाभिमानी व्यक्ति के रूप में बड़े होने के अवसर बड़ जाते हैं और ऐसे बच्चे बड़े होकर दूसरों का भी शोषण कम करते हैं।
आपात परिस्थितियों और मानवीय संकट के समय बाल संरक्षण की चिंता अधिक रहती है विस्थापन मानेगी पहुंच का अभाव पारिवारिक और सामाजिक बच्चों में बिखराव पारंपरिक मूल्यों का पतन हिंसा की संस्कृति दुर्बल प्रशासन जवाबदेही का ना होना और मूल सामाजिक सेवाओं की सुलभता के अभाव जैसी आपात परिस्थितियों में बाल संरक्षण के लिए गंभीर समस्याएं पैदा करती है
बाल संरक्षण एवं अन्य मुद्दों के बीच संपर्क :बाल संरक्षण का बच्चों के कल्याण में सभी पहलुओं से संबंध है जिस बच्चे को कुपोषण और बीमारी की आशंका रहती है वही प्रारंभिक अवस्था में प्रेरण से वंचित रहता है स्कूल नहीं जाता और उसी के साथ दुरुपयोग और शोषण की आशंका बनी रहती है एक बच्चा जैसे रोग रोधक टीके लगाए जा चुके हैं लेकिन उसकी लगातार पिटाई होती है वह स्वस्थ बच्चा नहीं है स्कूल जाने वाला एक बच्चा जिसे हमेशा उसकी जातीयता के आधार पर ताने दिए जाते हैं या जिससे दुर्वा बार किया जाता है उसे शिक्षा ग्रहण करने का अच्छा माहौल नहीं मिलता और एक किशोरी जिसे वेश्यावृत्ति के लिए बेच दिया जाता है उसे समाज में भागीदारी और योगदान का अधिकार नहीं मिल पाता है बाल संरक्षण विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।
बच्चों से संबंधित कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं है जो किसी ना किसी रूप में बाल संरक्षण से ना हो राय संरक्षण के सरोकार ऐसे मुद्दों के नीचे छिपे रहते हैं जिनका कोई प्रत्यक्ष संबंधित दिखाई नहीं देता उदाहरण के लिए स्कूलों में स्वच्छता से जुड़े संरक्षण सरोकार इन मुद्दों पर काम करते लोगों को भी सामने दिखाई नहीं पड़ते फिर भी स्कूल में लड़के लड़कियों के लिए साजिश स्वच्छता सुविधाओं और लड़कियों के लिए साक्षी स्वच्छता सुविधाओं लड़कियों के साथ योन दुर्व्यवहार के बीच संबंध को देखते हुए संरक्षण की आवश्यकता उजागर होती है।

OR

बाल संरक्षण का अर्थ बच्चों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा करना है। इसका उद्देश्य बच्चों को शोषण, हिंसा, दुर्व्यवहार, उपेक्षा और किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाना है। बाल संरक्षण के तहत निम्नलिखित प्रमुख बिंदु आते हैं:

  1. शिक्षा: सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
  2. स्वास्थ्य: बच्चों को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए।
  3. सुरक्षा: बच्चों को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
  4. न्याय: बच्चों को न्याय प्रणाली में विशेष ध्यान और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
  5. परिवार और समुदाय: बच्चों को एक सहायक और संरक्षक परिवार और समुदाय का वातावरण मिलना चाहिए।

बाल संरक्षण के लिए विभिन्न कानून, नीति, और कार्यक्रम बनाए गए हैं, जिनका पालन सुनिश्चित करना सभी की जिम्मेदारी है। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा बच्चों की सुरक्षा के लिए विभिन्न पहल और योजनाएं चलाई जाती हैं।



2.बाल वेश्यावृत्ति क्या है।

बाल वेश्यावृत्ति :
भारत के 6 सबसे बड़े शहरों में 18 वर्ष से कम उम्र की 21000 से 30000 वेश्याएं हैं वेश्यावृत्ति केवल लड़की तक सीमित नहीं है। बल्कि लड़के भी शामिल हैं श्रीलंका में लड़कों में वेश्यावृत्ति की लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक है।
यौन शोषण के दुष्परिणाम विनाशकारी होते हैं मनोवैज्ञानिक सामाजिक और शारीरिक क्षति के अतिरिक्त बाल वेश्याओं के लिए ऐप्स और अन्य एवं संचारी संक्रमण का शिकार होने का खतरा रहता है क्योंकि वह सुरक्षित यौन संबंधों पर जोर नहीं दे पाती हैं वेश्यावृति और मादक पदार्थों का गहरा रिश्ता है 90% बाल वेश्या किसी न किसी नशे की लत में आ जाती हैं जिससे उनका पुनर्वास एक समस्या बन जाता है।

OR

बाल वेश्यावृत्ति एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण और वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। भारत के बड़े शहरों में इस समस्या की व्यापकता चिंताजनक है, जहां अनुमानित 21,000 से 30,000 बच्चे इस कुरीति का शिकार हैं। यह समस्या केवल लड़कियों तक सीमित नहीं है, बल्कि लड़के भी इसमें शामिल हैं। श्रीलंका में लड़कों में वेश्यावृत्ति का स्तर लड़कियों से अधिक पाया गया है।

यौन शोषण के दुष्परिणाम अत्यंत विनाशकारी होते हैं। इससे बच्चों को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और शारीरिक क्षति होती है। बाल वेश्याओं के लिए एचआईवी/एड्स और अन्य यौन संचारित संक्रमणों का खतरा अधिक होता है, क्योंकि वे सुरक्षित यौन संबंधों का पालन करने में सक्षम नहीं होती हैं। वेश्यावृत्ति और मादक पदार्थों की लत का भी गहरा संबंध है। 90% बाल वेश्याओं को किसी न किसी प्रकार की नशे की लत लग जाती है, जिससे उनका पुनर्वास और भी मुश्किल हो जाता है।

इस समस्या से निपटने के लिए कठोर कानून, समाज की जागरूकता, और प्रभावित बच्चों के पुनर्वास की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।


3.नशे का बच्चों पर पडने वाले प्रमुख तीन प्रभाव बताईये । 

नशा संबंधी कोई भी तक तो जैसे तंबाकू विरोधी मालूम वाला भांग इत्यादि का मूड बदलने के लिए इस्तेमाल का हानिकारक तरीका है। जिसके कारण नियमित रूप से गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह समस्या स्कूल या घर में कार्य प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती हैं अनेक वास्तव में समस्या उत्पन्न होने लगती है।
बच्चों व किशोरों में नशे की लत बाकी सामान्य आबादी की तुलना में आसानी से लग जाती है निश्चित प्रकार के ड्रग्स जैसे वाइन एल्कोहल तमाड़ एवं शपथ कामकाजी वाले बच्चों में प्रचलित हैं लेकिन इसका सही आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है।

OR


बच्चों पर नशे का प्रभाव अत्यंत हानिकारक और बहुआयामी होता है। मुख्य रूप से तीन प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:

1. शारीरिक प्रभाव:

  • शारीरिक विकास में रुकावट
  • हृदय, फेफड़े, और जिगर जैसी महत्वपूर्ण अंगों को क्षति
  • इम्यून सिस्टम कमजोर होना और बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ना

नशे की लत से बच्चों के शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। यह उनके शारीरिक विकास को रोक सकता है और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। तंबाकू, शराब, और अन्य मादक पदार्थ बच्चों की हृदय, फेफड़े, जिगर और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को क्षति पहुँचा सकते हैं। इसके अलावा, यह बच्चों के इम्यून सिस्टम को कमजोर कर सकता है, जिससे वे विभिन्न बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

2. मनोवैज्ञानिक प्रभाव:

  • मूड और व्यवहार में परिवर्तन, जैसे चिड़चिड़ापन, उदासी, और आक्रामकता
  • चिंता, अवसाद, और अन्य मानसिक समस्याओं का विकास
  • आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास में कमी

नशा बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। यह उनके मूड और व्यवहार में परिवर्तन कर सकता है, जिससे वे चिड़चिड़े, उदास, या आक्रामक हो सकते हैं। नशे की लत के कारण बच्चों में चिंता, अवसाद, और अन्य मानसिक समस्याएँ विकसित हो सकती हैं। यह उनके आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे वे अपने भविष्य के प्रति निराशावादी हो सकते हैं।

3. शैक्षणिक और सामाजिक प्रभाव:

  • शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
  • स्कूल में उपस्थिति कम होना और प्रदर्शन में कमी
  • सामाजिक रूप से अलग-थलग होना, परिवार और दोस्तों के साथ संबंध बनाने में कठिनाई

नशा बच्चों की शैक्षणिक प्रदर्शन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। यह उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कम कर सकता है, जिससे उनकी स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन में गिरावट आ सकती है। इसके अलावा, नशे की लत के कारण बच्चे सामाजिक रूप से अलग-थलग हो सकते हैं और वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ संवाद और संबंध बनाए रखने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं। इससे उनकी सामाजिक कौशल और विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इन समस्याओं के समाधान के लिए बच्चों को सही दिशा-निर्देश और समर्थन की आवश्यकता होती है, ताकि वे नशे की लत से बच सकें और एक स्वस्थ और सकारात्मक जीवन जी सकें

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UNIT - 4

(1)    देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे कौन से हैं ? 

 देखभाल और संरक्षण के जरूरतमंद बालक:-धारा 1 के क्र. 14 के अनुसार देखरेख और संरक्षण का जरूरतमंद बालक ¼Child for need careand protaction½ C.N.C.P. वह है जो वेघर हैं:-
(1)    जो कार्य करता हुआ मिला हो । (बाल श्रमिक/बाल वधुआ मजदूर)
(2)    भीख माॅगते हुये (भिखारी बच्चा) अथवा सड़क पर रहते हुये मिला हो। 
(3)    जो किसी व्यक्ति के साथ रह रहा हो। (चाहे वह बच्चे का अभिरक्षक है अथवा नहीं) और वह व्यक्ति बच्चे का शोषण करता, चोट पहुॅचता, गाली देता अथवा अनदेखी करता हो अथवा समय प्रभावी किसी अन्य काननू का उल्लघंन करता है अथवा बच्चे को मारने, घायल करने, शोषण करने की धमकी देता हो अथवा अन्य बच्चांे अथवा बच्चे को मार डाला, उपेक्षित किया शोषण किया हो अथवा जो मानसिक अथवा शारीरिक रूप से विकृत है अथवा असाध्य या घातक बीमारी से ग्रसित है जिसके बाद उसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है अथवा जिसके माता-पिता अथवा संरक्षक है और वे माता-पिता या संरक्षक उसकी देखभाल करने में असमर्थ या अक्षम पाये गये अथवा जिसके माता-पिता नहीं है उन्होने छोड़ दिया है, जो लापता है अथवा जो बच्चा भाग गया है। जो यौन दुष्कृत्य अथवा अवैध कृत्य के प्रायोजन के लिये इस्तेमाल, उत्पीड़न अथवा शोषित किया गया हो। जो मादक पदार्थो के दुरूप्रयोग अथवा अवैध कारोबार में मिला है। जो किसी सशस्त्र संघर्ष, उपद्रव अथवा प्राकृतिक आपदा का शिकार है, जो बाल विवाह का जोखिम हो। 
ऐसे सभी बच्चों के लिये प्रत्येक जिले में एक या एक से अधिक बाल कल्याण समिति स्थापित की जायेगी। 
प्रमुख प्रावधान 
(1)    देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे के लिये पर सम्बन्धित समिति द्वारा अधिकतम 24 घण्टे के अन्दर बाल कल्याण समिति के एक सदस्य के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है। 
(2)    संबंधित एजेंसी (चाइल्ड लाइन 1098), पुलिस बाल कल्याण समिति, बाल संरक्षण इकाई/पंजीकृत गृह, को बच्चे की सूचना नहीं देना अपराध होगा और व्यक्ति को 6 माह की सजा अथवा 10,000/- रू. तक का जुर्माना है। 
(3)    देखभाल एवं संरक्षक की आवश्यकता बाले बच्चों के प्रकरण में बाल कल्याण समिति स्वविवेक से संज्ञान लेकर भी कार्यवाही कर सकती है। 
(4)    बाल कल्याण समिति के निर्णय के विरूद्ध 30 दिन के अन्दर संबंधित जिला एवं सत्र न्यायालय में अपील प्रस्त्ुत की जा सकेगी, परन्तु फोस्टर केयर, प्रायोजकता एवं आफ्टर केयर से संबंधित अपील संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जायेगी। 
हमारी भूमिका:-
(1)    हम कानून से संघर्षरत बच्चे या उसके परिवार को नियम की जानकारी दे सकते हैं एवं किशोर न्याय बोर्ड से सम्पर्क कर उसके न्याय को सुनिश्चित करा सकते हैं। 
(2)    न्याय मित्र की भूमिका का निर्वाहन कर सकते हैं।
3)    देखभाल एवं संरक्षण बाले बच्चों की सूचना जिला बाल कल्याण समिति या चाइल्ड लाइन को फ्री काॅल 1098 पर दे सकते हैं। 

OR



(2)    बाल विवाह के 3 प्रमुख कारण बतायें ?

भारत में बाल विवाह:-
    भारत में 42% विवाहित महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में की गई थी। 
    यूनीसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की हर 3 बाल बधू में से भारत की एक है। 
    जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 15 साल से कम उम्र की 45 लाख लड़कियाॅ विवाहित है व उनके बच्चों हैं। 
4.2.1    बाल विवाह के कारण:-
    लड़कियों को भार समझना:- कई भारतीय परिवारों में लड़कियों को बोक्ष माना जाता है और उन्हें लगता है कि जल्दी शादी कर देने से दहेज कम देना पड़ेगा। 
    असुरक्षा की भावना:-बाल विवाह को सुरक्षा की दृष्टि से भी कई परविार अपनाते है, उन्हें लगता है कि बड़ी उम्र पर लड़कियों के साथ यौन व्यवहार, शोषण की घटना हो सकती है वही वो खुद को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं मानते हैं।
    सम्मान की रक्षा:-लड़कियाॅ बड़ी होने पर स्वयं की मर्जी से जाति परम्परा के बाहर शादी न कर लें, इस कारण से भी बचपन मंे ही शादी करने की परम्परा है। 

OR

देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे (C.N.C.P.):

  1. बेघर बच्चे:

    • जो कार्य करता हुआ मिला हो (बाल श्रमिक/बाल बंधुआ मजदूर)
    • भीख मांगते हुए या सड़क पर रहते हुए मिला हो (भिखारी बच्चा)
  2. शोषित या उपेक्षित बच्चे:

    • जो किसी व्यक्ति के साथ रह रहा हो और वह व्यक्ति बच्चे का शोषण करता हो, चोट पहुँचाता हो, गाली देता हो, अनदेखी करता हो, या कानूनी उल्लंघन करता हो।
    • जिसे मारने, घायल करने, शोषण करने की धमकी दी गई हो।
    • जिसे शारीरिक या मानसिक विकृति या असाध्य बीमारी है और देखरेख करने वाला कोई नहीं है।
    • जिसके माता-पिता या संरक्षक उसकी देखभाल करने में असमर्थ या अक्षम पाए गए हैं।
    • जिसके माता-पिता नहीं हैं या जिसने अपने माता-पिता को छोड़ दिया है।
  3. अन्य जोखिम के बच्चे:

    • जो यौन दुष्कर्म या अवैध कृत्य के लिए शोषित या उत्पीड़ित किया गया हो।
    • जो मादक पदार्थों के दुरुपयोग या अवैध कारोबार में मिला हो।
    • जो सशस्त्र संघर्ष, उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ हो।
    • जो बाल विवाह के जोखिम में हो।

प्रमुख प्रावधान:

  1. प्रस्तुति:

    • देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे को संबंधित समिति द्वारा अधिकतम 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति के एक सदस्य के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
  2. सूचना देना अनिवार्य:

    • संबंधित एजेंसी (चाइल्ड लाइन 1098), पुलिस, बाल कल्याण समिति, बाल संरक्षण इकाई/पंजीकृत गृह को बच्चे की सूचना न देना अपराध है, जिसमें 6 माह की सजा या 10,000/- रु. तक का जुर्माना हो सकता है।
  3. संज्ञान:

    • बाल कल्याण समिति स्वविवेक से संज्ञान लेकर भी कार्यवाही कर सकती है।
  4. अपील:

    • बाल कल्याण समिति के निर्णय के विरुद्ध 30 दिन के अंदर संबंधित जिला एवं सत्र न्यायालय में अपील प्रस्तुत की जा सकती है, जबकि फोस्टर केयर, प्रायोजकता, और आफ्टर केयर से संबंधित अपील संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

हमारी भूमिका:

  1. नियम की जानकारी देना:

    • कानून से संघर्षरत बच्चे या उसके परिवार को नियम की जानकारी देकर किशोर न्याय बोर्ड से संपर्क कर उसके न्याय को सुनिश्चित करा सकते हैं।
  2. न्याय मित्र की भूमिका:

    • न्याय मित्र की भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं।
  3. सूचना देना:

    • देखभाल एवं संरक्षण वाले बच्चों की सूचना जिला बाल कल्याण समिति या चाइल्ड लाइन को फ्री कॉल 1098 पर दे सकते हैं।


(3)    बाल श्रम बचाव दल (टास्क फोर्स) की संरचना बतायें ?

बाल श्रम बचाव दल (टास्क फोर्स) की संरचना इस प्रकार हो सकती है:

  1. अध्यक्ष:

    • जिला मजिस्ट्रेट या कलेक्टर
  2. उपाध्यक्ष:

    • उप जिलाधिकारी या अपर कलेक्टर
  3. सदस्य सचिव:

    • श्रम विभाग का अधिकारी (जिला श्रम अधिकारी)
  4. सदस्य:

    • शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि (जिला शिक्षा अधिकारी)
    • पुलिस विभाग का प्रतिनिधि (पुलिस अधीक्षक या उनके द्वारा नामित अधिकारी)
    • स्वास्थ्य विभाग का प्रतिनिधि (मुख्य चिकित्सा अधिकारी)
    • महिला एवं बाल विकास विभाग का प्रतिनिधि (जिला बाल कल्याण अधिकारी)
    • समाज कल्याण विभाग का प्रतिनिधि (जिला समाज कल्याण अधिकारी)
    • गैर सरकारी संगठन (NGO) के प्रतिनिधि, जो बाल श्रम उन्मूलन के क्षेत्र में कार्यरत हैं
  5. विशेष आमंत्रित सदस्य (आवश्यकतानुसार):

    • बाल संरक्षण अधिकारी
    • स्थानीय पंचायत या नगर निकाय के प्रतिनिधि
    • श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधि
    • उद्योग और वाणिज्य संगठनों के प्रतिनिधि

कार्य और जिम्मेदारियाँ:

  • समन्वय: विभिन्न विभागों और संगठनों के बीच समन्वय स्थापित करना।
  • राहत और पुनर्वास: बचाए गए बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पुनर्वास सुनिश्चित करना।
  • जागरूकता: बाल श्रम उन्मूलन के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।
  • मॉनिटरिंग: बाल श्रम के मामलों की निगरानी और नियमित रूप से समीक्षा करना।
  • विधिक कार्रवाई: बाल श्रम में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ विधिक कार्रवाई करना।
  • रिपोर्टिंग: राज्य और केंद्रीय स्तर पर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना।

इस संरचना के माध्यम से बाल श्रम उन्मूलन के प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।



(4)    बाल विवाह को शून्य कैसे घोषित करा सकते हैं ? 

बाल विवाह को शून्य कैसे बनाया जा सकता है ?

  • बाल विवाह को शून्य घोषित करने के लिये याचिका जिला अदालत में बालक या बालिका द्वारा दायर की जा सकती है जो विवाह के समय बच्चा था। 
  • यदि याचिकाकर्ता नावालिग है तो याचिका बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी या माता-पिता/अभिभावक द्वाा दायर की जा सकती है। 
  • याचिका बालक-बालिका द्वारा व्यस्कता प्राप्त करने के पश्चात् 2 वर्ष पूरा करने के भीतर दायर की जा सकती है। लड़का 23 साल की उम्र तक व लड़कियाॅ 20 साल तक की उम्र तक। 

OR

बाल विवाह के 3 प्रमुख कारण:

  1. लड़कियों को भार समझना:

    • कई भारतीय परिवारों में लड़कियों को बोझ माना जाता है और उन्हें लगता है कि जल्दी शादी कर देने से दहेज कम देना पड़ेगा। इस सोच के कारण लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती है ताकि परिवार आर्थिक रूप से कम बोझ महसूस कर सके।
  2. असुरक्षा की भावना:

    • बाल विवाह को सुरक्षा की दृष्टि से भी कई परिवार अपनाते हैं। उन्हें लगता है कि बड़ी उम्र में लड़कियों के साथ यौन शोषण या अन्य खतरों की घटनाएं हो सकती हैं। परिवार खुद को लड़कियों की सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं मानते हैं, इसलिए वे जल्दी शादी कर देते हैं ताकि लड़की का भविष्य सुरक्षित हो सके।
  3. सम्मान की रक्षा:

    • लड़कियों के बड़ी होने पर अपनी मर्जी से जाति, परम्परा के बाहर शादी न कर लें, इस कारण भी बचपन में ही शादी करने की परंपरा है। परिवार को लगता है कि जल्दी शादी कर देने से लड़की का सम्मान बना रहेगा और वह सामाजिक परम्पराओं का उल्लंघन नहीं करेगी।

भारत में बाल विवाह की स्थिति:

  • भारत में 42% विवाहित महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में की गई थी।
  • यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की हर 3 बाल बधू में से एक भारत की है।
  • जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 15 साल से कम उम्र की 45 लाख लड़कियाँ विवाहित हैं और उनके बच्चे हैं।

ये कारण और स्थिति बाल विवाह की गंभीरता को दर्शाते हैं और इसके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरूरत को उजागर करते हैं।



(5)    बाल दुव्र्यवहार (ट्रेफकिंग) के प्रमुख कारण बतायें ?

  बाल दुव्र्यपार (चाइल्ड ट्रेफकिंग):-भारतीय दण्ड संहिता (I.P.C.) 1860 के अनुसार ट्रेफकिंग से तात्पर्य है कि कोई भी व्यक्ति अगर शोषण के इरादे से किसी व्यक्ति अथवा किन्हींे व्यक्तियों को:-
(1)    डरा धमका कर या
(2)    बल प्रयोग अथवा किसी भी अन्य प्रकार की प्रताड़ना का प्रयोग करके या 
(3)    अपहरण द्वारा या 
    (A)    धोखा या कपट द्वारा या ताकत के दुरूपयोग द्वारा:-
    (1)    नौकरी पर रखना।     
    (2)    एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है। 
    (3)    आश्रय देता है।
    (4)    दूसरे को सौंप देता है। 
    (5)    किसी दूसरे से हासिल करता है। 
तथा इस हेतु व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के लिये भुगतान या फायदा देता है, अथवा प्राप्त करता है तो वह दुव्र्यापार (ट्रेफकिंग) का अपराध करता है। 
बाल र्दुव्यापार एक बहु आयामी प्रकृति का संगठित अपराध है, जिसकी पहुँच वैश्विक स्तर पवर है। इसमें धोखाधड़ी, अपहरण, खरीद, विक्री, गलत तरीके से कारावास आदि कई अपराधों के तत्व शामिल है, जिनसे विभिन्न प्रकार के शोषण और अपहरण को जन्म मिलता है जैसे बालश्रम बधुआ मजदूरी, यौन शोषण, बालात्कार अंग व्यापार आदि। 
5.2    बाल दुव्र्यापार क्यों ?    

  • सबसे लाभदायक अपराधिक गतिविधियों में से एक। 
  • माॅग एवं आपूर्ति के सिद्वान्त के आधार पर बाजार शक्तियों द्वारा संचालित संगठित उद्योग । 
  • यौन शोषण के लिये कमजोर लड़कियों की खरीद व विक्री आसान और कम लागत बाला व्यवसाय। 
  • सस्ते श्रम की उपलब्धता व बाजार श्रम से पाँच गुना लाभदयक । 

5.3    बाल दुव्र्यापार (Child Traffacking) के कारण:-

  • गरीबी।
  • शिक्षा का आभाव। 
  • आजीविका की तलाश में पलायन।
  • आर्थिक कारण।
  • पारिवारिक संघर्ष। 
  • नशा व मादक पदार्थ।

OR

बाल दुर्व्यवहार (ट्रैफिकिंग) के प्रमुख कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. गरीबी:

    • परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण, बच्चों को मजदूरी के लिए बेच दिया जाता है।
  2. शिक्षा का अभाव:

    • शिक्षा की कमी और स्कूलों की अनुपलब्धता से बच्चे आसानी से ट्रैफिकिंग का शिकार बन जाते हैं।
  3. सामाजिक असमानता:

    • जाति, वर्ग और लैंगिक भेदभाव के कारण बच्चों का शोषण बढ़ जाता है।
  4. बेरोजगारी:

    • माता-पिता की बेरोजगारी के कारण वे अपने बच्चों को काम करने के लिए मजबूर कर देते हैं।
  5. मूलभूत सुविधाओं का अभाव:

    • स्वास्थ्य, आवास और खाद्य सुरक्षा की कमी से बच्चों को ट्रैफिकिंग के जाल में फंसने का खतरा बढ़ जाता है।
  6. मजबूरी में पलायन:

    • प्राकृतिक आपदाएं, संघर्ष और युद्ध जैसी परिस्थितियों के कारण परिवारों का पलायन और बच्चों का अकेला होना।
  7. अज्ञानता और जागरूकता की कमी:

    • माता-पिता और समुदाय में ट्रैफिकिंग के खतरों और कानूनी सुरक्षा के बारे में जानकारी की कमी।
  8. गैर-कानूनी मांग:

    • घरेलू काम, यौन शोषण, जबरन मजदूरी, और अंग व्यापार जैसी गैर-कानूनी मांगों की वजह से बच्चों की तस्करी होती है।
  9. अपराध संगठनों का प्रभाव:

    • संगठित अपराध और माफिया नेटवर्क जो बच्चों की तस्करी को अंजाम देते हैं।
  10. कानून का कमजोर प्रवर्तन:

    • कानूनों का सही ढंग से लागू नहीं होना और अपराधियों को सजा न मिलना।

इन कारणों का समाधान करके बच्चों की तस्करी को रोका जा सकता है और उनके सुरक्षित और स्वस्थ जीवन की गारंटी की जा सकती है।

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UNIT - 5

1. चाईल्ड लाईन क्या है? यह किस क्षेत्र में कार्य करती है?

चाईल्ड लाइन एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन सेवा है जो भारत में बच्चों की मदद और सुरक्षा के लिए कार्य करती है। इसका मुख्य उद्देश्य संकट में पड़े बच्चों की तुरंत सहायता करना और उन्हें आवश्यक सेवाएं प्रदान करना है। चाईल्ड लाइन का टोल-फ्री नंबर 1098 है, जिसे कोई भी बच्चा या कोई भी व्यक्ति जो बच्चे की मदद करना चाहता है, कॉल कर सकता है।

कहानी के माध्यम से समझाया गया:

कहानी:

एक छोटे से गाँव में राधा नाम की एक 12 साल की लड़की रहती थी। राधा बहुत ही होशियार और मेहनती छात्रा थी, लेकिन उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई छोड़कर काम करे ताकि घर की आर्थिक स्थिति सुधर सके।

घटना:

एक दिन, राधा के माता-पिता ने उसे एक कारखाने में काम करने के लिए भेजने का फैसला किया। राधा को बहुत दुख हुआ, क्योंकि वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। उसने अपने स्कूल की शिक्षिका से यह बात साझा की। शिक्षिका ने राधा को चाईल्ड लाइन के बारे में बताया और उसे 1098 नंबर पर कॉल करने के लिए कहा।

मदद:

राधा ने अपनी शिक्षिका की मदद से चाईल्ड लाइन पर कॉल किया और अपनी समस्या बताई। चाईल्ड लाइन के कर्मचारी तुरंत हरकत में आए। वे राधा के गाँव पहुँचे और उसके माता-पिता से मिले। उन्होंने माता-पिता को बाल श्रम के खतरों और राधा की शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया।

परिणाम:

चाईल्ड लाइन की मदद से राधा को बाल श्रम से बचाया गया और उसे अपनी पढ़ाई जारी रखने का मौका मिला। राधा के माता-पिता भी समझ गए कि राधा की शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है और उन्होंने उसका समर्थन किया। बाद में, राधा ने अपनी पढ़ाई पूरी की और गाँव में अन्य बच्चों के लिए एक प्रेरणा बन गई।

निष्कर्ष:

चाईल्ड लाइन एक महत्वपूर्ण सेवा है जो बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करने में मदद करती है। यह सेवा बच्चों को संकट के समय तत्काल सहायता प्रदान करती है और उन्हें एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में जीवन जीने का अवसर देती है।



2. वैधानिक संस्थाओं पर टिप्पणी करें।

वैधानिक संस्थाएँ समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, और उनका उद्देश्य सामाजिक और नैतिक न्याय स्थापित करना, कानूनी नियमों का पालन करना और संविधान की रक्षा करना होता है।

  1. न्यायपालिका: यह संस्था कानूनी मामलों की सुनवाई करती है और न्याय व्यवस्था को संचालित करती है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि सभी व्यक्ति नियमों का पालन करें और न्यायपालिका के माध्यम से विवादों का निष्पादन हो।

  2. कानूनी निकाय: इसमें विभिन्न कानूनी निकाय शामिल होते हैं जो कानूनों के लागू होने का सुनिश्चित करते हैं और उनका अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। ये निकाय सिविल और जुर्माने की मामलों को सुलझाते हैं और समाज में कानूनी स्थिरता को बनाए रखने में मदद करते हैं।

  3. संविधानिक संस्थाएँ: ये संस्थाएँ संविधान की रक्षा करती हैं और सरकार के कार्यक्षेत्र को सीमित रखती हैं। वे लोकतंत्र की मजबूती को सुनिश्चित करती हैं और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती हैं।

इन संस्थाओं का संविधान और कानूनी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिससे समाज में न्याय और समर्थन की प्रणाली सुनिश्चित होती है।

वैधानिक संस्थाएँ समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि न्यायपालिका, कानूनी निकाय, और संविधानिक संस्थाएँ। इनका मुख्य उद्देश्य समाज में कानूनी न्याय की सुनिश्चितता और समर्थन की प्रणाली स्थापित करना होता है।

उदाहरण के रूप में, न्यायपालिका संविधान के अनुसार कानूनी मामलों की सुनवाई करती है और न्याय व्यवस्था को संचालित करती है। यह संस्था न्यायिक प्रक्रियाओं के माध्यम से विवादों का निष्पादन करती है और समाज में न्याय की सामाजिक और कानूनी स्थिरता को बनाए रखने में मदद करती है।

कानूनी निकाय भी विभिन्न कानूनी मामलों का समाधान करते हैं, जैसे सिविल मामले, जुर्माने और कानूनी विवादों की सुलझावट करने के लिए सक्रिय रहते हैं। इन संस्थाओं का अद्वितीय योगदान होता है जो कानूनी स्थिरता और समाज में विश्वास को सुनिश्चित करते हैं।

संविधानिक संस्थाएँ संविधान की रक्षा करती हैं और सरकार के कार्यक्षेत्र को सीमित रखती हैं। वे लोकतंत्र की मजबूती को सुनिश्चित करती हैं और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती हैं, जिससे समाज में न्याय और स्वतंत्रता की सुरक्षा होती है।

3. सुरक्षा और संरक्षण को बच्चों के संदर्भ में समझाईए।

बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण का तात्पर्य उन उपायों और नीतियों से है जो बच्चों को शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक रूप से सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए अपनाई जाती हैं। इसमें कई पहलू शामिल होते हैं:

  1. शारीरिक सुरक्षा:

    • बच्चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक हिंसा, दुर्व्यवहार, और उपेक्षा से बचाना।
    • बच्चों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करना, जैसे कि घर, स्कूल, और खेल के मैदान।
  2. मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा:

    • बच्चों को मानसिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार से बचाना, जैसे कि धमकी, उपेक्षा, और भावनात्मक शोषण।
    • बच्चों को एक सहायक और सकारात्मक वातावरण प्रदान करना, जिससे वे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान विकसित कर सकें।
  3. शैक्षिक संरक्षण:

    • बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सीखने के अवसर प्रदान करना।
    • स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  4. स्वास्थ्य और कल्याण:

    • बच्चों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं और पोषण प्रदान करना।
    • बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की देखभाल करना।
  5. कानूनी सुरक्षा:

    • बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत कानूनी ढांचा स्थापित करना।
    • बाल श्रम, बाल विवाह, और अन्य हानिकारक प्रथाओं के खिलाफ सख्त कानून लागू करना।
  6. सामाजिक सुरक्षा:

    • बच्चों को समाज में हिंसा और शोषण से बचाना।
    • बच्चों को सामाजिक समर्थन प्रणाली उपलब्ध कराना, जैसे कि समुदाय आधारित कार्यक्रम और सेवाएं।

बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों, समुदाय, और परिवार के सदस्यों का संयुक्त प्रयास आवश्यक होता है। यह न केवल बच्चों के वर्तमान बल्कि उनके भविष्य के विकास और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है।



4. बाल सुरक्षा में संस्थाओं की आवश्यकता क्यांे हुई?


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बाल सुरक्षा में संस्थाओं की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि बच्चों के शोषण, हिंसा, उपेक्षा और अन्य खतरों से सुरक्षित रखने के लिए एक संगठित, संरचित और समर्पित प्रयास की आवश्यकता होती है। यहां बाल सुरक्षा में संस्थाओं की आवश्यकता के कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

1. व्यवस्थित संरक्षण और देखभाल

बाल सुरक्षा में संस्थाएं बच्चों के लिए एक व्यवस्थित संरक्षण और देखभाल का ढांचा प्रदान करती हैं। ये संस्थाएं बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, और विकास के लिए आवश्यक सेवाएं प्रदान करती हैं।

2. कानूनी और नीतिगत कार्यान्वयन

कानूनों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संस्थाओं की आवश्यकता होती है। वे सुनिश्चित करती हैं कि बाल अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानून सही तरीके से लागू हों और बच्चों को न्याय मिल सके।

3. जागरूकता और शिक्षा

संस्थाएं बाल अधिकारों और सुरक्षा के बारे में समाज में जागरूकता फैलाने का काम करती हैं। वे माता-पिता, शिक्षकों, और समुदाय के अन्य सदस्यों को बच्चों की सुरक्षा के महत्व और उन्हें सुरक्षित रखने के तरीकों के बारे में शिक्षित करती हैं।

4. बचाव और पुनर्वास सेवाएं

संस्थाएं उन बच्चों को बचाव और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करती हैं जो शोषण, हिंसा या उपेक्षा का शिकार हो चुके हैं। ये सेवाएं बच्चों को सुरक्षित आश्रय, चिकित्सा सहायता, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, और शिक्षा प्रदान करती हैं।

5. मॉनिटरिंग और निगरानी

संस्थाएं बच्चों की सुरक्षा के लिए निगरानी और मॉनिटरिंग का काम करती हैं। वे बाल अधिकारों के हनन की घटनाओं को रिकॉर्ड करती हैं, उनकी जांच करती हैं, और आवश्यकतानुसार कार्रवाई करती हैं।

6. पॉलिसी और एडवोकेसी

संस्थाएं बाल सुरक्षा के लिए नीति निर्माण और एडवोकेसी का काम करती हैं। वे सरकार और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर बाल अधिकारों की रक्षा के लिए नई नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करती हैं।

7. सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव

संस्थाएं समाज में सकारात्मक सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव लाने का काम करती हैं। वे बाल विवाह, बाल श्रम, और अन्य हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने के लिए समुदाय के साथ काम करती हैं।

8. सहयोग और समन्वय

बाल सुरक्षा में कई एजेंसियों और संगठनों के बीच समन्वय और सहयोग की आवश्यकता होती है। संस्थाएं विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग सुनिश्चित करती हैं और एक समग्र दृष्टिकोण अपनाती हैं।

निष्कर्ष

संस्थाओं की भूमिका बाल सुरक्षा में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे बच्चों की सुरक्षा और विकास के लिए एक संगठित, संरचित और प्रभावी ढांचा प्रदान करती हैं। वे सुनिश्चित करती हैं कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा हो और वे एक सुरक्षित, स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें। बाल सुरक्षा में संस्थाओं की आवश्यकता इस बात को रेखांकित करती है कि बच्चों की सुरक्षा एक सामूहिक जिम्मेदारी है जिसे समाज के सभी हिस्सों को मिलकर निभाना है।



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